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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : हैं। निव अर्थात् जिनेश्वर के वचन का निह्नव करे-अपलाप करे, ऐसे निह्नवों के संग का त्याग करना । निव शब्द के उपलक्षण से पासत्था, कुशील आदिके संग का भी त्याग करना चाहिये । अन्यथा समकित की हानि होती है इस का त्याग करना तीसरी श्रद्धा कहलाती है । इस विषय पर जिनका समकित नष्ट हुआ है ऐसे जमालि आदि का दृष्टान्त है जिनमें से प्रथम जमालि का दृष्टान्त निम्नलिखित है:
. जमालि का दृष्टान्त ।
कुंडपुर नामक नगर में श्रीमहावीरस्वामी के बहन का लड़का जमालि नामक राजपुत्र रहता था । उस जमालि का विवाह श्रीमहावीरस्वामी की पुत्री सुदर्शना के साथ हुआ था जिसके साथ विषयसुख भोगता हुआ सुखपूर्वक अपना समय व्यतीत करता था।
एक समय विहार करते करते प्रभु उस नगर के उपवन में पधारे । उनका आगमन सुनकर जमालि वंदना करने गया। प्रभु को प्रदक्षिणापूर्वक वंदना कर निम्न लिखित देशना सुनीगृहं सुहृत्पुत्रकलत्रवर्गो,
धान्यं धनं मे व्यवसायलाभः । कुर्वाण इत्थं न हि वेत्ति मूढ़ो,
विमुच्य सर्वं व्रजतीह जन्तुः ॥१॥