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व्याख्यान ६ :
६७ : पुष्पचूला साध्वी का दृष्टान्त । गीतार्थसेवने सक्ता, पुष्पचूला महासती। सर्वकर्मक्षयाल्लेभे, केवलज्ञानमुज्वलम् ॥
भावार्थ:-गीतार्थ मुनि की सेवा में आसक्त हुई महासती ( साध्वी) पुष्पचूलाने सर्व कर्मों का नाश कर केवलज्ञान की प्राप्ति की। ___ इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में पृथ्वीपुर नामक नगर था जिसमें पुष्पकेतु नामक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पुष्पवती था जिसके पुष्पचूल नामक पुत्र और पुष्पचूला नामक पुत्री युगलरूप से पैदा हुए थे। उन दोनों भाई बहिनों में इतना स्नेह था कि एक क्षण मात्र के वियोग से वे एक दूसरे के लिये मरने को तैयार हो जाते थे। यह देख पुष्पकेतु राजाने विचार किया कि यदि इन दोनों को भिन्न भिन्न स्थान पर ब्याहें जायेंगे तो ये दोनों परस्पर के वियोग से मृत्यु को प्राप्त होंगे, अतः इन दोनों को यदि मैं परस्पर ब्याह , तो उत्तम होगा। ऐसा विचार कर राजाने मंत्रियों को तथा पुरवासियों को बुला कर प्रश्न किया कि मेरे अन्त:पुर में जो रत्न उत्पन्न हों उनका स्वामी कौन हो सकता है ? यह सुनकर वे सब बोले कि-नाथ ! आपके समग्र राज्य में किसी भी स्थान पर उत्पन्न हुए रत्नों के आप ही स्वामी हैं तो अन्तःपुर में उत्पन्न होनेवाले रत्नों के तो आप ही