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व्याख्यान ६ :
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पडने की आशंका जान कर अपने गच्छ को दूसरे स्थान पर भेजा दिया व स्वयं वृद्ध होने से वहीं पर रहे । उस पुष्पचूला - साध्वी निर्दोष आहार लाकर देने द्वारा अग्लान वृद्धि से गुरु की वैयावृत्त करने लगी । अनुक्रम से शुभ ध्यान क्षपकश्रेणि पर आरूढ़ होकर केवलज्ञान को प्राप्त किया फिर गुरु की सेवा करना जारी रक्खा अपितु गुरु की इच्छानुसार आहार लाकर उन्हें भेट कर सेवा करने लगी । इस पर गुरुने एक दिन उससे पूछा कि तू मेरे मन की इच्छा सदैव
कर जान जाती हैं ? साध्वीने उत्तर दिया कि - हे पूज्य ! जो जिसके साथ निरन्तर रहता है वह उसकी मनोवृत्ति क्यों कर नहीं जान सकता ? अर्थात् अवश्य जान जाता है ।
एक दिन वर्षा हो रही थी उस समय भी वह आहार लाई । तब सूरिने पूछा कि हे पुत्री ! तूं श्रुत की ज्ञाता है, ऐसी वर्षा में तूं आहार किस प्रकार लाई ? उसने उत्तर दिया कि - जिस जिस प्रदेश में अचित्त अप्काय की वृष्टि हुई थी उस उस प्रदेश में चलकर मैं आहार लाई हूँ इस से यह आहार अशुद्ध नहीं है । गुरुने पूछा कि तूने अचित्त प्रदेश किस प्रकार जाना ! उसने उत्तर दिया कि -ज्ञानद्वारा । सूरिने पूछा कि प्रतिपाति ज्ञानद्वारा या अप्रतिपाति
१ आकर चला जावे उसे प्रतिपाति ज्ञान कहते हैं - 1 २ आकर वापस नहीं आवे उसे अप्रतिपाति (केवलज्ञान) कहते हैं ।