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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : से ग्रंथिभेद किया है जिस से तुम को तथा उसको बड़ा भारी लाभ हुआ है लेकिन अब मुझ को देख कर जो उस को द्वेष उत्पन्न हुआ है उसका कारण बतलाता हूँ सो ध्यानपूर्वक सुनिये
पूर्व में मैं पोतनपुर नगर में प्रजापति राजा का पुत्र त्रिपृष्ठ वासुदेव था । उस समय तीन खंड का स्वामी अश्वग्रीव नामक प्रतिवासुदेव था । एक समय सभा में बैठे हुए अश्वग्रीव राजाने किसी निमित्तिये से अपने मरण के विषय में प्रश्न किया। तो उस निमित्तियेने उत्तर दिया कितुम्हारी मृत्यु त्रिपृष्ठ के हाथ से होगी। यह सुन कर अश्वग्रीव राजा त्रिपृष्ठ पर द्वेष रख कर निरन्तर उनके मारने का उपाय करने लगा, किन्तु उसके सब उपाय निष्फल हुए। उस अश्वग्रीव के पुरोद्यान में एक शालिक्षेत्र था उस में आकर एक सिंह निरन्तर अनेक मनुष्य का उपद्रव करता था, लेकिन उस सिंह को मारने में कोई समर्थ नहीं था। इस से उस शालिक्षेत्र की रक्षा के लिये अश्वग्रीवने अपने आधीन सब राजाओं को आज्ञा दी कि-बारी बारी से एक एक राजा उस क्षेत्र की रक्षा के लिये आते रहें । उस प्रकार आते आते एक बार प्रजापति राजा की बारी आई । उस . समय त्रिपृष्ठ कुमारने अपने पिता को जाने से रोक कर वह स्वयं ही उस उपद्रव को रोकने के लिये केवल एक सारथी को ही साथ लेकर रथारूढ़ होकर वहां गया। शालिक्षेत्र