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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
हुआ है। अर्थात् जिस जीव के लिये अर्द्धपुद्गलपरावर्तन संसार शेष रहा हो उसे शुक्लपक्षी कहते हैं और जिसके उससे अधिक संसार शेष हो उसे कृष्णपक्षी कहते हैं ।
इस प्रकार भगवंत के मुख से सुन कर कई प्राणियोंने समकित उपार्जन किया ( समकित प्राप्त किया )
हे गौतम | तेरे से केवल दो घड़ी के लिये समकित पाया हुआ वह कृषक अर्द्ध पुद्गल परावर्तन के अन्दर मोक्षपद प्राप्त करेगा इसी लिये तेरे को उसे प्रतिबोध देने के लिये मैने भेजा था। इस प्रकार उस कृषक का वृत्तान्त सुन कर इन्द्र आदि समकित में सुदृढ़ हुए । इसी प्रकार हे भव्य प्राणियों ! तुमको भी चित में चिरकाल पर्यंत समकित को स्थिर करने का प्रयत्न करना चाहिये । इत्यब्ददिन परिमितोपदेशप्रासादवृत्तौ प्रथमस्थंभे तृतीयं व्याख्यानम् ॥ ३ ॥
व्याख्यान ४
समकित के तीन भेद ।
समकित को ज्ञान चारित्र से भी अधिक कहा गया है जो इस प्रकार हैं:
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श्लाघ्यं हि चरणज्ञानवियुक्तमपि दर्शनम् । न पुनर्ज्ञानचारित्रे, मिथ्यात्वविषदूषिते ॥ १ ॥