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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : सुनाया। यह सुनकर कुमारने उत्तर दिया कि-यह बात दुष्कर नहीं हैं, शीघ्र ही हो सकती है। यह कर उसने एक छाणे का पिंड ( cow dung ) उस मुद्रिका पर डाला, जिससे वह मुद्रिका उस पिंडे में चिपक गई । फिर जब वह कन्डा सुख गया तब उस जल रहित कुए को जल से भर दिया जिस से वह सुखा कन्डा मुद्रिका सहित तैर कर ऊपर आ गया । अभयकुमार ने उसको अपने हाथ से निकाल लिया और उसमें चिपकी हुई अंगुठी को उखेड़ कर राजा के पास भेजा। यह वृत्तान्त सुन कर हर्षित हुआ राजा श्रेणिक स्वयं ही कुए पर आया और कुमार को देख कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ। राजाने कुमार को आलिंगन कर पूछा कि-हे वत्स! तू किस ग्राम से आ रहा हैं ? और क्या तू इसी ग्राम में रहता हैं ? कुमारने प्रणाम कर उत्तर दिया कि-हे स्वामी ! मैं बेनातट नाम के पुर में से आज ही यहां आया हूँ । राजाने पूछा कि-वहां पर धन नामक श्रेष्ठी रहता हैं जिसके सुनन्दा नामक एक पुत्री हैं । क्या तू उसका कुछ वृत्तान्त जानता है ? कुमारने उत्तर दिया कि-हाँ, उसके एक पुत्र उत्पन्न हुए हैं जिस का नाम अभयकुमार रक्खा है । वह कुमार रूप, गुण में एवं आयु में मेरे ही समान हैं । हे स्वामी ! मुझे देख कर यही समझीये कि मानो उसीको देखा हो। उसके साथ मेरा प्रगाढ़ स्नेह हैं, उसके बिना मैं एक क्षण भी विलग नहीं रह सक्ता । राजाने प्रश्न किया कि-फिर इस समय उसको छोड़