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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :
एक ही पति है या अनेक ! स्वामीने उत्तर दिया कि - हे श्रेणिक ! तेरी सर्व स्त्रियें धर्मपत्नी ( पतिव्रता ) हैं । गत रात्रि को यहां से जाते हुए तूने और चेलणाने नदी किनारे जिस मुनि को देखा था तथा उसका स्मरण कर मध्य रात्रि को चेणाने कहा था कि ऐसी सर्दी में उसकी क्या दशा हुई होगी ? किन्तु दुसरे आशय से वह नहीं बोली । इस प्रकार के वचन भगवान के मुख से सुनकर श्रेणिकराजा शीघ्रतया अपने घर की ओर दौड़ा ।
इधर अभयकुमारने राजा की आज्ञा होने पर विचारा कि- राजाने मुझे आज्ञा तो दी है किन्तु यह कार्य सहसा करने से परिणाम में अत्यन्त दुखदायी होगा । ऐसा विचार कर उसने अन्तःपुर के पासवाले घास के घरों को खाली कर जीव जंतु रहित खोज कर दिया और भगवान के समवसरण की ओर चल दिया । मार्ग में श्रेणिकराजा सामने आते हुए मीले । उसने अभयकुमार को पूछा कि तूने क्या किया १ अभयने उत्तर दिया कि आप की आज्ञानुसार किया । यह सुनकर राजाने क्रोध के आवेश में कहा किमेरी दृष्टि से दूर हठ जा, मुझे तेरा मुंह न दिखा | ऐसा काम करने का साहस तेरे अतिरिक्त अन्य कौन मूर्ख करे ? यह सुन कर 'पिताकी आज्ञा स्वीकार है' ऐसा कह कर अभ यकुमारने समवसरण में जा कर प्रभु के पास दीक्षा ग्रहण की !