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व्याख्यान ४:
: ४५ को जातिस्मरण ज्ञान हुआ, इससे वह मेंढक मुझ को वंदना करने निमित्त बाव में से बाहर निकल कर मार्ग में कूदता कूदता आ रहा था उस समय तुम भी उसी रास्ते से यहां आरहे थे, अतः तुम्हारे घोड़े के पैर के नीचे कुचला जाकर वह मेंढ़क मेरे ध्यान में मरण पाकर सौधर्म देवलोकमें दर्दुरांक नामक देवता हुआ।
वह देव आज इन्द्रद्वारा खुद की सभा में की गई तुम्हारी समकित की प्रशंसा सुन कर उस पर श्रद्धा नहीं होने से तुम्हारी परीक्षा करने को यहां आया था और उसने कुष्ठ के बहाने गोशीर्षचन्दन द्वारा हमारी भक्ति की है।
इस प्रकार उस देवता का वृत्तान्त सुन कर श्रेणिक राजाने फिर से प्रभु से प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! उस देवताने जब आपको छींक आई तो मरने का, मुझे चिरकाल जीने का, अभयकुमार को जीना अथवा मरना, और कालसौकरिक को म मर और म जीव ऐसा क्यों कहाँ? जिनेश्वर ने उत्तर दिया कि-हे राजा ! उस देवने भक्ति के राग से मुझ को ऐसा कहा कि हे स्वामी ! तुम समग्र कर्मों का क्षय करके जन्म जरा मरण आदि से रहित स्वाभाविक सुखवाले मोक्षपद को जल्दी प्राप्त करो। तुमको इस हेतु से कहा कितुम जीते हो तब तक राज्यसुख का अनुभव करते हो परन्तु मरने के पश्चात् घोर नरक में जानेवाले हो अतः बहुत