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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर :: उस बकरे का मांस खिला कर उन सब को कुष्ठी बना कर वह ब्राह्मण रात्रि के समय घर में से निकल कर भग गया। वन में भ्रमण करते हुए विविध प्रकार की औषधियों के मूल से बहते हुए पानी से भरे एक सीते का पानी पीने से उनकी व्याधि का नाश हो गया सो वह पीछा उसके घर को गया और उसके पुत्रों से कहा कि-तुमने मेरा अपमान किया था जिस से तुम को उसका यह फल मिल गया
और में व्याधि रहित हो गया हूँ। यह सब वृत्तान्त सुन कर पुरवासियोंने उस ब्राह्मण को निन्दित कर वहां से निकाल दिया। वह वहां से चल कर राजगृह नगर को आया और द्वार आ कर बैठ रहा। इस बीच मेरा जब यहां समवसरण हुआ तब मुझ को वन्दना करने का उत्सुक द्वारपाल उस सेडुक ब्राह्मण को दरवाजे पर चोकी देने को रख कर समवसरण में आया। पिछे से उस ब्राह्मणने पुरदेव के पास जो बड़ा, पक्वान्न आदि अनेकों नैवेद्य पुरजनोंने रखे थे उनको खूब ठोस ठोस कर खाया और बाद में अत्यन्त तृषा से आतुर हो कर वह पानी पानी चिल्लाता हुआ मृत्यु को प्राप्त कर उसी दरवाजे के पास एक बाव में मेढ़क हुआ। . एक बार फिर हमारा समवसरण इसी स्थान पर हुआ, उस समय मेरा वंदन करने की उत्कंठावाली पानी भरनेवाली स्त्रियों के मुख से हमारा आगमन सुन कर उस मेंडक