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व्याख्यान ४ :
:४३ : वह वहां के स्थानिक राजा की सेवा किया करता था। एक समय राजाने प्रसन्न हो कर उसको वरदान मांगने को कहा तब उस ब्राह्मणने अपनी स्त्री से मंत्रणा कर राजा से वरदान मांगा कि-हे राजा ! मुझे इस नगरी में हमेशा मिष्टान्न भोजन व ऊपर एक मोहर दक्षिणा मिलती रहे ऐसा प्रबन्ध कर दीजिये। यह सुन कर राजाने कुछ हँस कर उसी प्रकार प्रबन्ध कर दिया । फिर वह ब्राह्मण सदैव भिन्न भिन्न घर पर भोजन करने लगा परन्तु दक्षिणा के लोभ से किये हुए भोजन का वमन कर वह एक से अधिक घर पर भोजन करने को जाने लगा, इस से उसको कुछ समय में कुष्ठ रोगने आ दबाया। यह देख कर राजा तथा उसके कुटुम्बी जनोंने उसको बहुत कुछ बुरा भला कहा इस से वह कुष्ठी क्रोधायमान हुआ । उसने एक बकरा मंगवाया और उसको उसके कुष्ठ के रस से भीगो भीगो कर घास आदि खिलाने लगा। जिस से उन बकरे का खून आदि सब कुष्ठमय हो गया। फिर उस ब्राह्मणने एक दिन उसके पुत्र आदि कुटुम्बियों को कहा कि-हमारे कुल की ऐसी रीति है कि जब कोई वृद्ध होता है तो वह उसके खुद के पुत्र आदि को एक बकरे के मांस का भोजन कराकर फिर वह तीर्थगमन करता है, अतः तुम सब इस बकरे का मांस खाओ और मुझे जाने की आज्ञा दो। यह सुन कर पुत्र आदिने उसकी आज्ञा स्वीकार की अर्थात् उन सब को