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नं०
१.
३.
४.
५.
७.
I
२. जम्बूद्वीप में क्षेत्र पर्वत नदी आदि का प्रमाण १ क्षेत्र नगर प्रादि का प्रमाण
नाम
महाक्षेत्र
कुरुक्षेत्र
कर्मभूमि
भोगभूमि
श्रार्यखण्ड
म्लेच्छखण्ड
राजधानी
विद्याधरों के नगर
गणना
२
३४
३४
१७०
**
२७४०
(३७५०)
१२०००० X ४६
في
भरत हैमवत्यादि ।
देव व उत्तर कुरु ।
भरत, ऐरावत व ३२ विषे
विवरण
हैमवत्, हरि, रम्यक थ हैरण्यवत तथा दोनों कुरुक्षेत्र ।
प्रतिकर्मभूमि एक
अन्तर एक राजु उत्सेध, सात राजु आयाम और साठ हजार योजन बाहुल्य वाले वातवलय की अपेक्षा दोनों पार भागों में स्थित बात क्षेत्र को वृद्धि से अलग करके जगप्रतर प्रमाण से सम्बद्ध करने पर सात से भाजित एक लाख बीस हजार योजन बाहल्म प्रमाण जगभर होता है ।
प्रति कर्मभूमि पांच
प्रति कर्मभूमि एक
भरत ऐरावत के विजयाथों में से प्रत्येक पर ११५ तथा ३२ विदेहों के विजयात्रों में से प्रत्येक पर ११० (दे० विद्याधर
इसको पूर्वोक्त क्षेत्र के ऊपर स्थापित करने पर पांच लाख चालीस हजार योजन के सातवें भाग बाहल्य प्रमाण जगावर
होता है।
(६०००० × ७) + १२००००–५४००००–४६
१
の
मुख
इसके आगे इतर दो दिशाओं अर्थात् दक्षिण और उत्तर की अपेक्षा एक राजु उत्सेध रूप तल भाग में सात राज्जु श्रायामरूप, में सातवें भाग से अधिक छह राजु विस्तार रूप और साठ हजार योजन बाहुल्यरूप वायुमण्डल की अपेक्षा स्थित बात क्षेत्र के जगतर प्रमाण से करने पर पचपन लाख बीस हजार योजन के तीन सौ तेतालीसवें भाग बाहुल्य प्रमाण जगप्रतर होता है । ५५२०००० X ४९ _ ५५२०००० X ४६
+9 ३××६०००.
७४४६
३४३
इस उपर्युक्त घनफल के प्रमाण को पूर्वोक्त क्षेत्र के ऊपर रखने पर तीन करोड़ उन्नीस लाख अस्सी हजार योजन के तीन सौ नेतालीसवें भाग बाहृत्य प्रमाण जगप्रतर होता है ।
५४०००० ५५२०००० ३४३
+
३१६८०० X ४६ ३४३
७
इसके अनम्बर सात राजु विष्कंभ, तेरह राजु श्रायाम तथा सांसह बारह ( सोलह एवं बारह) पोजन बाहूल्य रूप अर्थात् सान
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