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जे भवि' सर्व चरन तिन्हें सम्यक दरसाचे; करें पाप कल्याण सूवारहभावन भावें !! पंच महाव्रत धरें बरें शिवसुन्दर नारी; निज अनुभौ रसलीन परम-पदके सुविचारी ! दशलक्षण निजधर्म गहैं रत्नत्रयधारी !! ऐसे श्री मुनिराज चरन पर जग-बलिहारी !!!"
ब्रिटिश-शासनकाल में दिगम्बर मुनि "All sliall alike enjoy the equal and in partial protection of ile Law, and We do strictly charge and enjoin all those who may be in authority under us that they abstain from all interfcrance with the religious beliel' or worship ol any of our subjects on pain of our highest displeasure."
-- Queen Victoria महारानी विक्टोरिया ने अपनी १ नवम्बर सन १८५८ की घोषणा में यह बात स्पष्ट कर दी है कि ब्रिटिश शासन की छत्र-छाया में प्रत्येक जाति और धर्म के अनुयायी वो अपनी परम्परागत धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं को पालन करने में पूर्ण स्वाधीनता होगी और कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी के धर्म में हस्तक्षेप न करेगा। इस अवस्था में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत दिगम्बर मुनियों को अपना धर्मपालन करना सुगम-साध्य होना चाहिए और वह प्रायः सुगम रहा है।
गत ब्रिटिश-शासनकाल में हमें कई एक दिगम्बर मुनियों के होने का पता चलता है। मं. १८७० में ढाका शहर में श्री नरसिंह नामक मुनि के अस्तित्व का पता चलता है । इटावा के आसपास इसी समय मनि विनयमागर व उनके शिष्यगण धर्मप्रचार कर रहे थे। लगभग पचास वर्ष पहले लेखक के पूर्वजों ने एक दिगम्बर मुनि महाराज के दर्शन जयपुर रियासत के फागो नामक स्थान पर किये थे। वह मुनिराज वहां पर दक्षिण की ओर से विहार करते हुये पाये थे।
दक्षिण भारत की गिरी-गुफाओं में अनेक दिगम्बर मुनि इस समय में ज्ञान ध्यान रत रहे हैं। उन सब का ठोक-ठोक पता पा लेना कठिन है। उनमें से कतिपय जो प्रसिद्धि में आ गये उन्हीं के नाम आदि प्रगट हैं। उनमें श्री चन्द्रक.ति महाराज का नाम उल्लेखनीय है । वह सम्भवतः मुरुमंदया के निवासो थे और जैनबद्री में तपस्या करते थे। वह एक महान तपस्वी कहे गये हैं। उनके विषय में विशेष परिचय ज्ञात नहीं है।
किन्तु उत्तर भारत के लोगों में साम्प्रत दिगम्बर मनि श्री चन्द्रसागरजी का ही नाम पहले-पहल मिलता है। वह फलटन (सतारा) निवासी एमड़जातीय पासी नामक धाबक थे । सं० १९६६. में उन्होंने कुरुन्दवाड़ग्राम (सोलापुर) में दिगम्बर मनि श्री जिनप्पास्वामी के समीप क्षल्लक के व्रत धारण किये थे । सं० १९६६ में झालरापाटन के महोत्सव के समय उन्होंने
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--- --- १. Royal proclamation of Ist Nov. 1858 २. "संवत् अष्टादश शतक व सतर बरस ।....."डाका सहर सुहामण, देश बम के मांहि । जैनधर्मधारक जिहां धावक अधिक मुहाहि ।......"तामु शिष्य विनयी वियुग हर्षचन्द गुणवा । मुनि नरसिंह विनयविधि पुस्तक एह लिखत ॥"
–दि जैन बड़ा मन्दिर का एक गुटका ३. दिजे० वर्ष अङ्क १ पृ. २१
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