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श्री समन्तभन्न प्राचार्य की वीर श्रद्धांजलि देवागम नमोयान चामरादिविभूतयः । माया विष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान ॥१॥
-प्राप्त मीमांसा अर्थात्-देवों का आगमन, आकाश में गमन और त्रामरादिक (दिव्य, चमर, छत्र, सिंहासन, भामण्डलादिक, विभतियों का अस्तित्व तो मायावियों में -इन्द्रजालियों में भी पाया जाता है, इनके कारण हम आपको महान् नहीं मानते और न इनके कारण से यापकी कोई खास महत्ता या बड़ाई ही है।
'भगवान महावोर' की महत्ता और बड़ाई तो उनके मोहनीय ज्ञानावरण, दर्शनावरण अन्तराय नामक कर्मों का नाश करके परम शान्ति को लिये हुये शुद्धि तथा शक्ति की पराकाष्ठा को पहुंचाने और ब्रह्म-पथ का-अहिंसात्मक मोक्ष मार्ग का नेतृत्वग्रहण करने में हैं। अथवा यों कहिये कि आत्मोद्धार के साथ-साथ सच्ची सेवा बजाने में है।
त्वं शुद्धिशक्यत्योरुदयस्य काष्ठां तुला व्यतीता जिमशांति पाम् । अवापिथ ब्रह्मपथस्य नेता महानीतियत् प्रतिवक्तुमीशाः ।।
-श्री समन्तभद्राचार्यः युक्त्यानुशासन । त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं ब्रह्माण्डमीश्वरमनन्तमनंगकेतु । योगिश्वरं विदितयोगमनेकमेक, ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ।।२४॥
-मानुतुगाचार्यः भक्तामर स्तोत्र । अर्थात् हे जिनेन्द्र भगवान ! आप अक्षय, परम ऐश्वर्य संयुक्त, सर्वज्ञ, योगेश्वर, सर्वव्यापक, देवों के देव महादेव, अनन्तानन्त गुणों की खान, कर्मरूपी मल से पवित्र, शुद्धचित्त रुप, कामदेव' का नाश करने वाले, अर्हन्त तथा तीनों लोक और तीनों काल के समस्त पदार्थों को एक साथ रहने और जानने नारे केबल ज्ञानी हो । मैं आपकी बार-बार वन्दना करता हूँ।
ब्राह्मण धर्म पर जैन धर्म की छाप जैन धर्म अनादि है । गौतम बुद्ध महाबीर स्वामी ने शिष्य थे। चौबीस तीर्थकरों में महावीर अन्तिम तीर्थकर थे। यह जैन धर्म को पुनः प्रकाश में लाये, अहिंसा धर्म ध्यापक हुआ। इनसे भी जैन धर्म की प्राचीनता मानी जाती है। पूर्वकाल में यज्ञ के लिए असंख्य पशु-हिंसा होती थी, इसके प्रमाण मेघदूत काव्य' तथा और ग्रन्थों से मिलते हैं। रन्तिदेव नामक राजा ने यज्ञ किया था, उसमें इतना प्रचुर पशु-बध हुआ था कि नदी का जल खून से सतवर्ण हो गया था। उसी समय से उस नदी का नाम चर्मवती प्रसिद्ध है। पशु वध से स्वर्ग मिलता है इस विषय में उक्त कथा साक्षी है, परन्तु इस घोर हिंसा का ब्राह्मण धर्म से विदाई ले जाने का श्रेय जैन धर्म को है। इस रीति से ब्राह्मण धर्म अथवा हिन्दू धर्म को जैन धर्म ने अहिंसा धर्म बनाया है। यज्ञ याज्ञादि कर्म केवल ब्राह्मण ही करते थे क्षत्री और वैश्यों को यह अधिकार नहीं था और शूद्र बेचारे तो ऐसे बहुत विषयों में अभागे बनते थे। इस प्रकार मुक्ति प्राप्त करने की चारों वर्गों में एक-सी छूट न थी। जैन धर्म ने इस त्रुटि को भी पूर्ण किया है।
मुसलमानों का शक, इसाईयों का शक, विक्रम शक, इसी प्रकार जैन धर्म में मवीर स्वामी का शक [सन् ] चलता है। शक चलाने की कल्पना जैनी भाइयों ने ही उठाई थी।
आजकल यज्ञों में पशु हिंसा नहीं होती। ब्राह्मण और हिन्दू धर्म में मांस भक्षण और मदिरा पान बन्द हो गया सो यह भी जैन धर्म का ही प्रताप है। जैन धर्म की छाप ब्राह्मण धर्म पर पड़ी।
___ अहिंसा के अवतार भगवान महावीर मेरा विश्वास है कि बिना धर्म का जीवन बिना सिद्धान्त का जीवन है और बिना सिद्धान्त का जीवन वैसा ही है जैसा कि बिना पतवार का जहाज ।'
जहाँ धर्म नहीं वहां विद्या नहीं, लक्ष्मी नहीं, और निरोगता भी नहीं। सत्य से बढ़ कर कोई धर्म नहीं और अहिंसा १. महाकवि कालिदास कुत-मेघदूत श्लोक ४५, २. जैन धर्म का महत्व (सूरत) भाग १ पृ०१-६२, ३. अनेकान्त वर्ष ४, पृ० ११२
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