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तो एक बड़े पशु का वध करना उचित है, ऐसा विचार करना भी ठीक नहीं है क्योंकि चल-फिर न सकने वाले एक इन्द्रियं स्थावर जीवों की अपेक्षा चलते-फिरते दो इन्द्रिय त्रस जीवों के वध में असंख्य गुणा पाप है बकरी, गाय, भैंस, बैल आदि पंच इन्द्रिय जीवों का वध करना तो ग्रनन्तानन्त असंख्य गुणा दोष है । अन्न-जल के बिना तो जीवन का निर्वाह असम्भव है, परन्तु जीवन की स्थिरता के लिये मांस की बिल्कुल श्रावश्यकता नहीं है ।
विष्णुपुराण के अनुसार, 'जो मनुष्य मांस खाते हैं वे थोड़ी आयु वाले, दरिद्री होते हैं। महाभारत के अनुसार, 'जो दूसरों के माँस से अपने शरीर को शक्तिशाली बनाना चाहते हैं, वे मर कर नीच कुल में जन्म लेते हैं और महादुखी होते हैं। पार्वती जी शिव जी से कहती हैं- जो हमारे नाम पर पशुओं को मार कर उनके मांस और खून में हमारी पूजा करते हैं, उनको करोड़ों कल्प नरक के महादुख सहन करने पड़ेंगे। महर्षि व्यास जी के कथानुसार - 'जीव हत्या के बिना मांस की उत्पत्ति नहीं होती इसलिए मांस भक्षी जीव हत्या का दोषी है। महर्षि मनु जी के शब्दों में, 'जो अपने हाथ से जीव इत्या करता है, मांस खाता है, देचता है, पकाता है, खरीदता है या ऐसा करने की राय देता है वह सब जीव हिंसा के महापापी है।" भीष्मपितामह के शब्दों में, 'मांस खाने वालों को नरक में गरम तेल के कढ़ाओं में वर्षों तक पकाया जाता है। श्रीकृष्ण जी के शब्दों में, 'यह बड़े दुख की बात है कि फल, मिठाई मादि स्वादिष्ट भोजन छोड़कर कुछ लोग मांस के पीछे पड़े हुए हैं।" महर्षि दयानन्द जी ने भी मांस भक्षण में अत्यन्त दोष बताये है। स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार, 'मांस भक्षण तहजीव के विरुद्ध है।" मौलाना रूमी के अनुसार, 'हजारों खजाने दान देने, ख़ुदा की याद में हजारों रात जागने और हजार सजदे करने और एक-एक सजदे में हजार बार नमाज पढ़ने को भी स्वीकार नहीं करता, यदि तुमने किसी तिर्यंच का भी हृदय दुखाया। शेखसादी के अनुसार, जब मुंह का एक दांत निकालने से मनुष्य को अत्यन्त पीड़ा होती है तो विचार करो कि उस जीव को कितना कष्ट होता है जिसके शरीर से उसकी प्यारी जान निकाली जाये । ११ फिरदौसी के अनुसार, 'कीड़ों को भी अपनी जान इतनी ही प्यारी है, जितनी हमें इसलिये छोटे से छोटे प्राणी को भी कष्ट देना उचित नहीं ।" हाफिज अलया उलरहीम साहिब के अनुसार शराब पी. कुरानशरीफ को जला, काबा को भाग लगा, बुतखाने में रह लेकिन किसी भी जीव का दिल न दुखा हिन्दू मुसलमान, सिख, ईसाई तथा फारसी आदि सब ही धर्म मांस भक्षण का निषेध करते हैं १४ इसलिए महाभारत को कथानुसार सुख-शान्ति तथा supreme peace के अभिलाषियों को मांस का त्यागी होना उचित है,
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१. अल्प दराच परकर्मोपजीविनः । दुष्कुलेषु प्रजायन्ते वे नरा मांसभक्षकाः । - विष्णुपुरास
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अनु. पवं अध्याय ११६
२. स्वां परमानो नास्ति शुतरस्तस्यात सनुतन
३.तामचा जीवन आकल्पकोटि नरके तेषां वासो न संशय ॥
- पद्मपुरा शिवं प्रति दुर्गा
Y. Meat is not produced from grass, wood or stone. Unless life is killed meat can not be obtained. Flesh eating therefore is a great evil. --Mahabharata. Anusasan Parva. 110-13
५. Manu Ji Manusmriti, 5-51.
. Meat eaters take repeated births in various wombs and are put every time to unnatural death through forcible suffocation. After every death they go to 'Kumbhipuka Hell' - M. B. Anu 115-31 where they are baked on fire like the Potters vessel. s. It is pity that wicked discarding sweetmeats and vegetable etc. pure food, hanker. —lbid. 116-1-2 after meat like demohs.
5. Urdu Daily Pratap, Arya SamaJ Edition (Nov. 30. 1653) p. 6. e. "Meat eating is uncivilixed'
mel
- Meat Eating A Study p. 8.