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रोरोटी की हयूमेन सोसाइटी तथा इसी प्रकार की अन्य संस्थाए वहां इस विषय में अत्यन्त उपयोगी कार्य कर रहीं हैं। इस विषय में डाक्टर ऐलेन भी बड़ा भारी कार्य कर रहे हैं।
जर्मन वर्णगले प्रगट है कि यद्यपि भारत वर्ष में शेष संसार की अपेक्षा मांसाहार का प्रचार कम है, तथापि वह जीव दया के कार्य में उससे बहुत पीछे है। इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और अमेरिका मांसाहारी देश होते हुए भी जीव दया के सम्बन्ध में भारत से वहत आगे हैं। भारत वर्ष का दावा है कि वह कई ऐसे विश्व धर्मों की जन्मभूमि है, जिसका प्राधार
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MANTRA
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HARISHNA
टिचनापली के पास पुतुर के कुलुमियायी मंदिर में दो तीन माह के भेड़ के बच्चों की गर्दनें दांतों से काटकर अथवा छरी से छेद करके देवी को सामने उनका रक्त चूसा जाता है इस घोर राक्षसी कृत्य ने तो खूम्बार जंगली जानवरों को भी मात कर दिया है।
அந்தோ ! இந்த அநாகரிகக் கொடுமைகள் று கழியுமா
प्रम और अहिंसा है, तो भी यह अत्यन्त मेद की बात है कि वह जाव दया और प्राणी रक्षा के विषय में संसार के अन्य देशों से बहुत पीछे है । संसार का एक बहुत पिछड़ा हुआ देश है।
भारतवर्ष में अभी तक परमात्मा और धर्म के नाम पर बड़े-बड़े अत्याचार करके प्राणियों को प्राणांतक कष्ट दिया जाता है । दक्षिण भारत इस विषय में शेष भारत से भी बाजी मार ले गया है । वहां मुक पशुओं पर धर्म के नाम पर बड़े-बड़े अमानुपिक अत्याचार किये जाते हैं । जिन्हें देख सुनकर रोंगटे खड़े होते हैं और दिमाग भकरम जाता है । लेख में दिये गये कुछ चित्रों से इन अत्याचारों का आभास मिलता है । उनके वहाँ पुनः उल्लेख करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं
होती।
इनके अतिरिक्त दक्षिण के अनेक जिलों में यज्ञ के लिए बकरों को मारने की प्रथा बहुत जोरों पर है बकरों के अण्डकोषों को किसी भारी वस्तु से दबाकर कुचलने आदि के अमानुषिक कर्म द्वारा उन मुक पशुओं को मरणान्तिक वेदना पहुंचाई जाती है।
इस प्रकार पशुओं को धर्म के नाम पर असह्य यंत्रणा पहुंचाने वाले कुकृत्यों के अथवा धार्मिक निर्दयता के ये कुछ उदाहरण है, जो प्रायः तिलकछाप धारी हिन्दूरों के द्वारा किये जाते हैं, और किये जाते हैं, खबगा बजाकर-हिसानन्दी रौद्र ध्यान में मग्न होकर ! संसार के और भी भागों में इनके जैसे अन्य अनेक ऐसे कुकर्म किये जाते हैं, जिनको सुनकर हृदय काप उठता है और समझ में नहीं पाता कि ऐसे क्रूर कर्मों के करने वाले मनुष्य हैं या राक्षस अथवा जंगली जानवर ।
पाश्चात्य देश यद्यपि मांसाहारी हैं किन्तु वहां प्रयोगशालाओं को छोड़कर अन्यत्र पशुत्रों को यंत्रणा पहुंचाकर नहीं मारा माता। वहां पशुओं के ऊपर निर्दयता पूर्ण व्यवहार करने के विरुद्ध कानून बने हुए हैं, जिनका उल्लंघन करने पर जुर्माने