Book Title: Bhagavana  Mahavira aur unka Tattvadarshan
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 966
________________ २- शराब का त्याग शराब खनेक जीवों की योनि है जिसके पीने से वह नर जाते हैं, इसलिए इसका पीना निश्चित रूप से हिंसा है | Dr. A. C. Selman के अनुसार यह गलत है कि शराब से थकावट दूर होती है या शक्ति बढ़ती है।" फ्रांस के experts खोज के अनुसार, "शराब पीने से बीवी-बच्चों तक से प्रेम-भाव नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य अपने कर्तव्य को भूल जाता है, चोरी, डकैती आदि की आदत पड़ जाती है। देश का कानून भंग करने से भी नहीं डरता, यही नहीं बल्कि पेट, जिगर, सपेदिक आदि अनेक भयानक बीमारियां लग जाती है। इंग के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री Gladstone के शब्दों में युद्ध, फाल और प्लेग की तीनों इकट्ठी महाप्रापत्तियां भी इतनी वाघा नहीं पहुंचा सकती जितनी अकेली शराब पहुंचाती है।" ३. - मधु का त्याग – शहद मक्खियों का उगाल है। यह बिना मक्खियों के छत्ते को उजाड़े प्राप्त नहीं होता इसलिये महाभारत में कहा है, "सात पादों को लाने से जो पाप होता है, वह शहद की एक बूंद खाने में है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जो लोग सदा महदखाते हैं ये भवश्व नरक में जायेंगे ।" मनुस्मृति में भी इनके सर्वथा त्याग का कथन है, जिसके बाधार पर महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थ प्रकाश के समुल्लास ३ में शहद के त्याग को शिक्षा दी है। चाणक्य नीति में भी शहद को अपवित्र वस्तु कहा है। इसलिये मधु सेवन उचित नहीं है । ४. अक्षण का त्याग - जिस वृक्ष से दूध निकलता है उसे क्षीरवृक्ष या उदुम्बर कहते हैं। उदुम्बर फल जस जीवों की त्रस उत्पत्ति का स्थान है इसलिए श्रमरकोष में उदुम्बर का एक नाम 'जन्तु फल' भी कहा है और एक नाम 'हेमदुग्धम है, इसलिये पीपल, गूलर, पिलखन, बड़ और काक ५ उदुम्बर के फलों को खाना असं अर्थात् चलते-फिरते जन्तुयों की संकल्प हिंसा है। गाजर मूली, शलजम आदि कन्द-मूल में भी त्रस जीव होते हैं, शिवपुराण के अनुसार, 'जिस घर में गाजर, मूली शलजम प्रादि कन्द-मूल बकाये जाते हैं वह घर मरघट के समान है। पितर भी उस पर में नहीं पाते और जो कन्दमूल के साथ अन्न खाता है उसकी शुद्धि और प्रायश्चित सौ चान्द्रायण व्रतों से भी नहीं होती। जिसने प्रभक्षण का भक्षण किया उसने ऐसे तेज जहर का सेवन किया जिसके छूने से ही मनुष्य भर जाता है। वेगन आदि अनन्तानन्त बीजों के पिण्ड के खाने से रौरव नाम के महा १. This books २. "He who desires to attain Supreme-peace should on no account eat meat". 3. Every class and kind of wine, whisky brandy, gin. beer or today all contain alcohol which is not a food, but is a pawerful poison. Thinking that it is a useful medicine, removes tiredness, helps to think or increases strength is absolutely wrong. It stupefies brain destroys power, spoils health. shortens life and does not cure disease at all". - Health and Longevity (oriental watchman P.H. Poona) P. 97-101. r. "Wine causes to lose natural effection renders ineficient in work and leads to steal and rob and makes an habitual lawbreaker. It is a prime cause of many serious diseasesParalysis, inflammation, insanity Kidneys tuberculosis etc." --Ibid. P. 87, The combined harm of three great scourges-war famine and pestilence is not as terrible as wine drinking." -Ibid. P. 67 ६. ताया। तत्पापं जायते पुंसां मधु विन्द्वक भक्षणात् ॥ - महाभारत ७. वर्जयेन्मधुमांसंच प्राणितां नंब सिंहनम् । मनु २ लोक १७७ — Mahabharta, Anu 115-55 ८. सुरां मरस्यान् मध्मांसमास कृसरोदनम् । प्रवर्तितं वेदेषु कश्वितम् ॥ ११० नीति अ० ४ ० १६ ८१२ :

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