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श्रीकृष्ण जी के शब्दों में अचार, मुरब्बा श्रादि अभक्ष्य आलू -शकरकन्द आदि कन्द वाले को नरक की वेदना सहन करनी पड़ती है।
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दुःखदायी नरक में दुःख भोगने पड़ते हैं और गाजर, मूली, गंठा यादि मूल खाने ५. बिना ने जल का त्याग जैन धर्म अनादि काल से कहता चला पाया है कि वनस्पति, जल, अग्नि वायु धौर पृथ्वी एक इन्द्रिय स्थावर जीव हैं परन्तु संसार न मानता था। डा० जगदीशचन्द्र बोस ने वनस्पति को वैज्ञानिक रूप से जीव सिद्ध कर दिया तो संसार को जैन धर्म की सच्चाई का पता चला। इसी प्रकार जल को जीव मानने से इन्कार किया जाता रहा तो कंष्टिनस्वी ने वैज्ञानिक खोज से पता लगाया कि पानी को एक छोटी सी बूंद में ३६४५० सूक्ष्म जन्तु होते हैं, जिसके आधार पर महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने भी सत्यार्थ प्रकाश के दूसरे समुल्लास में जल को छान कर पीने के लिये कहा है ।
३६ चौड़े ४८ अंगुल लम्बे मजबूत, मल रहित, गाढ़े हरे शुद्ध खट्टर के वस्त्र से जो कहीं से फटा न हो, पानी छानना उचित है। यदि वरतन का मुंह अधिक चौड़ा है तो उस वरतन के मुँह से तीन गुणा दोहरा खद्दर का प्रयोग करना चाहिये | और छने हुए पानी से उस छनने को धोकर उस धोवन को उसी बावड़ी या कुएं में गिरा देना चाहिये जहां से पानी लिया गया हो । यह कहना कि पम्प का पानी जालों से छन कर आता है, उचित नहीं । क्योंकि जालों के छेद सीधे होने के कारण छोटे सूक्ष्म जीव उन छेदों में से थासानी से पार हो जाते हैं। यह समझना भी ठीक नहीं है-"म्युनिसिपलिटी फिल्टर से शुद्ध पानी भरती है इसलिये टंकी के पानी को छानने से क्या लाभ?" एक बार के छने हुए पानी में ४८ मिनट के बाद फिर जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं इसलिए जीवहिंसा से बचने तथा अपने स्वास्थ्य के लिये छने हुए पानी को भी यदि वह ४८ मिनट से अधिक काल का है, ऊपर लिखी हुई विधि के साथ दोदारा छानना उचित है।
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६. रात्रि भोजन का त्यागधेरे में जीवों की अधिक उत्पत्ति होने के कारण रात्रि में घोर हिंसा है। यह कहना कि बिजली की तेज रोशनी से दिन के समान चांदना कर लेने पर रात्रि उचित नहीं विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया कि (Oxygen) तन्दुरस्ती को लाभ और ( Carbonic)
भोजन करना या कराना भोजन में क्या हर्ज है? हानि पहुंचाने वानी है।
वृक्ष दिन में कारवॉनिक चूसते हैं घोर श्रावसीजन छोड़ते हैं जिसके कारण दिन में वायु मण्डल शुद्ध रहता है और शुद्ध वायुमण्डल में किया हुआ भोजन तन्दुरुस्ती बढ़ाता है। रात्रि के समय वृक्ष भी कारवोनिक गैस छोड़ते हैं जिसके कारण वायुमण्डल
१. हे निस्पयते जनः मशान तुल्यं तवेश्म पितृभिः परिवजितम् ।। केन समं चान्यस्तु भुक्ते राधन विविधेत् चन्द्रा पर
भुक्तं हताहतेन कृतं मध्यभक्षणम् । वृताकभक्षणं चापि नरो याति च रौरवम् ॥ - शिवपुराण
२. चश्वारो नरकद्वार प्रथम रात्रिभोजनम् । परस्त्रीगमन बंद संपावे ।। ये रात्रौ सर्वदाहरं वर्जयन्ति सुमेधसः । तेषां पक्षोपवासस्य मासमेकेन जायते ॥ लोकपि पातव्यं शव बुधिष्ठिरः ।
तपस्विनो विशेषेण गृहिणां च विवेकिनाम् । महाभारत
अर्थात् श्रीकृष्ण जी ने युधिष्ठिर जी को नरक के जो (१) रात्रि भोजन, ( २ ) परस्त्री-सेवन, (३) अवार- मुरच्या आदि का भक्षण, (४) आलू, शकरकन्दी आदि कन्द अथवा गाजर, मूली, गंठा आदि मूल का खाना, यह चार द्वार बताये और कहा कि रात्रि भोजन के त्याग से १ महीने १५ दिन के उपवास का फल स्वयं प्राप्त हो जाता है ।
३. 'सिद्ध पदार्थ विज्ञ०' यू० पी० गवर्नमेंट प्रेस, सरल जंनधर्म, पृ० ६५-६६
४. 'दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत् ॥ मनुस्मृति ६ । ६४
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