Book Title: Bhagavana  Mahavira aur unka Tattvadarshan
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 943
________________ जैनधर्म नास्तिक नहीं है रा. रा. श्री वासुदेव गोबिन्द आपटे बी० ए. शंकराचार्य ने जैनधर्म को नास्तिक कहा है कुछ और लेखक भी इसे नास्तिक समझते हैं लेकिन यह आत्मा, कर्म और सष्टि को नित्य मानता है। ईश्वर की मौजूदगी को स्वीकार करता है और कहता है कि ईश्वर तो सर्वज्ञ नित्य और मंगलस्वरूप है। पात्माकर्म या सृष्टि के उत्पन्न करने या नाश करने वाला नहीं। और न ही हमारी पूजा, भक्ति और स्तुति से प्रसन्न होकर हम पर विशेष कृपा करेगा। हमें कर्म अनुसार स्वयं फल मिलता है। ईश्वर को कर्ता, या कर्मों का फल देने वाला न मानने के कारण यदि हम जैनियों को नास्तिक कहेंगे तो 'न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः । न कर्म फलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तले ॥ नादत्ते कस्यचित्पापं न कस्य सुकृतं विभुः । अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ।। __ -श्रीकृष्ण जी : श्रीमद्भागवदगीता । ऐसा कहने वाले श्रीकृष्णजी को भी नास्तिकों में गिनना पड़ेगा। मास्तिक और नास्तिक यह शब्द ईश्वर के अस्तित्व सम्बन्ध में व कतत्व सम्बन्ध में न जोड़कर पाणिनीय ऋषि के सूत्रानुसार परलोकोऽस्तुति मतिर्यस्यास्तीति आस्तिक: परलोको नास्तिती मतिर्यस्यास्तीति नास्तिकः । श्रद्धा करें तो भी जैनी नास्तिक नहीं हैं। जैनी परलोक स्वर्ग, नर्क और मृत्यु को मानते हैं इसलिये भी जैनियों को नास्तिक कहना उचित नहीं है। यदि बेदों को प्रमाण न मानने के कारण जैनियों को नास्तिक कहो तो क्रिश्चन, मुसलमान. बद्ध प्रादि भी 'नास्तिक' की कोटि में पा जायेगे। चाहे आस्तिक व नास्तिक का कैसा भी अर्थ ग्रहण करें, जैनियों को नास्तिक ..क-जबसे मैंने शंकराचार्य द्वारा जैन सिद्धान्त का खण्डन पढ़ा है तबसे मुझे विश्वास है कि जैन सिद्धान्त में बहुत कुछ है, जिसे वदाल के आवायों ने नहीं समझा। मेरा यह दह विश्वास है कि यदि वे जनधर्म को उसके असली अन्यों से जानने का कष्ट उठाते तो उन्हें जैन धर्म से विरोध करने की कोई बात न मिलती। ----डा. गंगानाथ झा : जनदर्शन लिथि १६ दिसम्बर १६५५ पृ० १८१ ख-बडे-बड़े नामी आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में जो जनमत खंडन किया है, वह ऐसा किया है जिसे सुन, देखकर हंसी आती है। महामहोपाध्याय स्वामी राममित्र, जनधर्म महत्व सूरत भा० १, पृ० १५३ । २-३. भ० महावीर का धर्मोपदेश, खंड २ । ४. महन्त भक्ति खंड २। ५. 'कर्मवाद' खंड २। ६. परमेश्वर जगत का कर्ता या कर्मों का उत्पन्न करने वाला नहीं है। कर्मों के फल की योजना भी नहीं करता। स्वभाव से सब होते हैं । परमेश्वर किसी का पाप या पुण्य भी नहीं लेता । अज्ञान के द्वारा ज्ञान पर पर्दा पड़ जाने से प्राणीमात्र मोह में पड़ जाता है। ७. परलोक है ऐसी जिसको मान्यता है वह आस्तिक है ! परलोक नहीं है ऐसी जिसकी गति है वह नास्तिक है। ५. देप्टिकास्तिक नास्तिक:-माकटायनः वैयाकरण ३-२-६१ क-अस्ति परलोकादि मतिरस्य मास्तिकः तद्धिपरीतो नास्तिक: -अभयचन्द्र सूरि ख-अस्ति नास्तिदिष्ट मति :--पाणिनीय व्याकरण ४-४-६० निम्नलिखित प्रसिद्ध ग्रन्थों से सिद्ध है कि नास्तिक व आस्तिक का चाहे जो अर्थ लें जैनी नास्तिक नहीं हैं:क-शाक्टायन व्याकरण, ३-२-६१ ख-आचार्य पाणिनीयः व्याकरण, ४-४-६० ग-हेमचन्द्राचार्य शब्दानुशासन, ६-४-६६ ५३७

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