Book Title: Bhagavana  Mahavira aur unka Tattvadarshan
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 944
________________ सद्ध नहीं किया जा सकता।' जैन धर्म और विज्ञान गृ० पृ० संख्या ११६ * Thirthankaras were professors of the spiritual Science, which enables men to become 'God. . . -What is Jainism ? p. 48. अाजकल दुनिया में विज्ञान (Science) का नाम बहुत सुना जाता है इसने ही धर्म के नाम पर प्रचचित बहुत से ढोंगों की कलई खोली है। इसी कारण अनेक धर्म यह घोषणा करते हैं कि धर्म और विज्ञान में जबरदस्त विरोध है। जैन धर्म तो सर्वज्ञ वीतराग, हितोपदेशी जिनेन्द्र भगवान् का बताया हुमा वस्तु स्वभाव रूप है। इसलिये यह वैज्ञानिकों की खोजों का स्वागत करता है। भारत के बहुत से दार्शनिक शब्द (sound) को आकाश का गुण बताते थे और उसे अमतिक बताकर अनेक युक्तियों का जाल फैलाया क्रते थे, किन्तु जैनधर्माचार्यों ने शब्द को जड़ तथा भूतिमान बताया था. आज विज्ञान ने ग्रामोफोन (Gramophon) रेडियो (Radio) आदि ध्वनि सम्बन्धी यन्त्रों के आधार पर शब्द को जैनधर्म के समान प्रत्यक्ष सिद्ध कर दिया। न्याय और वैशेषिक सिद्धान्तकार पृथ्वी, जल, बायु ग्रादि को स्वतन्त्र मानते हैं किन्तु जैनाचार्यों ने एक पुद्गल तत्व बताकर इनको उसकी अवस्था विशेष बतलाया है। विज्ञान ने हाइड्रोजिन आक्सीजन (Hydrogen Oxygen) नामक वायुओं का उचित मात्रा में मेल कर जल बनाया और जल का पथक्करण करके उपर्युक्त हवानों को स्पष्ट कर दिया। इसी प्रकार पृथ्वी अवस्थाधारी अनेक पदार्थों को जल' और वायु रूप अवस्था में पहुंचाकर यह बताया है कि वास्तव में यह स्वतन्त्र तत्व नहीं है. किन्तु पुद्गल (Matter) को विशेष अवस्थाए हैं। .. आज हजारों मील दूरी से शब्दों को हमारे पास तक पहुंचाने में माध्यम (Medium) रूप से 'ईथर' नाम के प्रदश्य तत्वों की वैज्ञानिकों को कल्पना करनी पड़ी; किन्तु जनाचार्यों ने हजारों वर्ष पहले ही लोकव्यापी 'महास्वन्ध' नामक एक पदार्थ के अस्तित्व को बताया है। इसकी सहायता से भगवान् जिनेन्द्र के जन्मादि की वार्ता क्षण भर में समस्त जगत में फैल १. शरदतोमहानिधि कोष पृ० १८५ ऊ, अविधान चिन्तामणि, कांड, इलोक ५२६ । घ. प्रोफेसर होरालाल कौशल : जैन प्रचारक, वर्ग २२ अंक, प० २-४ जैन धर्म महत्व (सूरत) भा० १ पृ० ५५-६१ 2. (i) Jainism is accused of being a thcitic. but this is not so because jainism believe in Godhead and innumerable Gods. (ii) "Those who believe in a creater sometimes look upon jainism as an a theistic religion, but jainism can not be so called as it does not deny the existance of God," Mr. Herburt warren-Digamber jain (Surat) vol. ix p. 48-58. (iii) For further detail see : - (a) Jainism is not a theism priced -14/- published by Digamber Jain Parished, Dariba kalan, Delhi. (d) जैन धर्म महत्व सूरत भा० १,१० ५८-६१. (c) Jain parchark (Jain orphanage, Daryaganj, Delhi) vol. XXXII part 1. IX p. 3-4. ३. भ० महावीर का धर्म उपदेश', खण्ड २ । 7. The Jaina account of sound is a physical concept. All other Indian systems of thoughts spoke of sound as a quality of space, tut Jainism explains sound in relation with material partieles as a result of concussion of atmospheric molecules. To prove this scientific thesis the Jain thinkers employed arguments which are now generally found in the text book of physics. -Prof. A Chakravarti : Jaina Antiquary. Vol. IX P. 5-15. १. भ. महावीर का धर्म उपदेश खण्ड २ के फुटनोट 15.

Loading...

Page Navigation
1 ... 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014