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केवल अहिंसा से शान्ति
जा खां साहब मुझे दृढ़ विश्वास है कि केवल अहिंसा से ही मनुष्य को सुख और शान्ति प्राप्त हो सकती है।
-बीर भारत १७-७-४११०८ अहिंसा से सुख और शान्ति
सरहदी गांधी श्री अब्दुल गफ्फार यां यदि जनता सच्चे हृदय से अहिसा का व्यवहार करने लग जाय तो संसार को अवश्य सुख और शान्ति प्राप्त हो जाय।
-जैन संसार, मार्च १९५७१०६ जैन समाज का सहयोग
श्रीमान भाई परमानन्द जी कौमी राष्ट्रीय मजबूत और संगठित बनाने में जैन समाज को मदद करके अपने आपको मजबूत और संगठित समझना चाहिए।
-बीर १२-५-४४ पृ० ५ जैन धर्म की आवश्यकता
सरदार जोगेन्द्र सिंह भूतपूर्व शिक्षामन्त्री भारत सरकार जैन धर्म प्रेम, सहिंसा और संगठन सिखाता है। जिसको अाज के संसार को बड़ी यावश्यकता है।
-वीर देहली २०-५-४३ पृ० १५८ जैन धर्म प्रशंसा योग्य है
स्वामा सम नजामी जैन धर्म प्राचीन धर्म है। मेरी अन्तर आत्मा कहती है कि जैन धर्म के नियम प्रशंसा तथा स्वीकार करने योग्य है।
-मांसाहार भाग २, पृ०६२ कर्मों को जीतने वाले भगवान महावीर
डा. ताराचन्द जी शिक्षामन्त्री भारत सरकार महावीर स्वामी ३० वर्ष की भरी जवानी में घर बार त्याग कर साधु बन गये थे। उन्होंने आत्मध्यान से इन्द्रियों को बश करके घोर तपस्या की और ४२ वर्ष की आयु में राग द्वेष के बन्धनों से मुक्त होकर मार्फत इलाही (केवलज्ञान) प्राप्त किया और कर्म रूपी शत्रुनों को जीतकर महन्त तथा जिनेन्द्र की उत्तम पदवी प्राप्त की।
-महले हिन्द की मुख्तसर तारीख पापों को दूर करने का उपाय
डा० अमरनाथ झा प्रधान यू०पोल सर्विस कमीशान अहिंसा धर्म का पालना दुनिया के पापों को दूर करके सबको बड़ा पुण्य प्राप्त करना है।
-जंन संसार, देहली, मार्च सन् ४७ पृ०६ वीर का तप त्याग और अहिंसा
थोयुत महात्मा आनन्द सरस्वती मझे भगवान महावीर के जीवन में तीन बातें बहुत सुन्दर नजर आती हैंत्याग
अहिंसा भगवान महावीर के बाद लोग इतने प्रमादवश हो गये कि त्याग-तप-अहिंसा उनकी कायरता नजर आने लगी । मैंने जन ग्रन्थों का स्वाध्याय किया है। श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार में मुझे तीन श्लोक नजर पड़े जिन में गृहस्थी के लिए स्पष्ट तौर पर केवल एक प्रकार की संकल्पी हिंसा का त्याग बताया गया है जो राग द्वेष के भावों से जान बूझकर की जावे। उद्यम हिंसा जो व्यापार में होती है, प्रारम्भी हिंसा घरेलू कार्यों पर होती है तथा विरोधी हिंसा जो अपने या दूसरे के बचाव माल, धन
तप
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