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करके अपने प्रापको मुकम्मल बना लिया था। तुम कहते हो ये नंगे रहते थे, इस में ऐब क्या ? परमनन्तनिष्ट. परमज्ञानी और कुदरत के सच्चे पुत्र को पोशाक की जरूरत कब थी ? 'सरमद' नाम का एक मुसलमान फकीर देहली की गलियों में घूम रहा था औरंगजेब बादशाह ने देखा तो उसको पहनने के लिये कपड़े भेजे । फकीर वली था कहकहा मार कर हंसा और बादशाह की भेजी हुई पोशाक को वापिस कर दिया और कहला भेजा :
प्राकस कि तुरा कुलाह सुल्तानी दाद । मारा हम प्रो अस्बाब परेशानी दाद। पोलानीद सनास हरकर देवे दीद।
बे ऐबा रा लववास अयानी दाद ।' यह लाख रुपये का कलाम है, फकीरों की नग्नता को देख कर तुम क्यों नाक भौं सुकोड़ते हो? इनके भाव को नहीं देखते । इसमें ऐब की क्या बात है ? तुम्हारे लिए ऐब हो इनके लिये तो तारीफ की बात है।
जार्ज बर्नाडशा को जैनी होने की इच्छा
विश्व के अप्रतिम विद्वान जार्ज बडिशा जैन धर्म के सिद्धान्त मुझे अत्यन्त प्रिय हैं। मेरी आकांक्षा है कि मृत्यु के पश्चात् में जैन परिवार में जम्म धारण करूं।
जैन धर्म से विरोध उचित नहीं
मुख्योपाध्याय श्री बरवाकान्त एम० ए० हमारे देश में जैन धर्म के सम्बन्ध में बहुत से भ्रम फैले हुए है । साधारण लोग जैन धर्म को सामान्य जानते हैं कुछ इसको नास्तिक समझते हैं, अनेकों की धारणा में जैन धर्म प्रत्यन्त अशुचि तथा नग्न परमात्मा पूजक है। कुछ शंकराचार्य के समय जन धर्म का प्रारम्भ होना स्वीकार करते हैं, कुछ महावीर स्वामी अथवा पार्श्वनाथ को जैन धर्म का प्रवर्तक बताते है. कछ जैन धर्म की हिसा पर कायरता का इलजाम लगाते हैं, कुछ इसको हिन्दू अथवा बौद्ध धर्म का प्रवर्तक बताते हैं, कल इसको हिन्दू अथवा बौद्ध धर्म की शाखा समझते हैं कुछ कहते हैं, कि यदि मस्त हाथी भी तुम पर आक्रमण करे तो भी प्राण रक्षा के लिए जैन मन्दिरों में प्रवेश मत करो। कुछ वेदों और पुराणों को स्वीकार न करने तथा ईश्वर को कर्ता-धर्ता और कर्मों का फल देने वाला न मानने के कारण जैनियों से विरोध करते रहते हैं।
Prof. weber ने History of Indian Literature. में स्वीकार किया है 'जैन धर्म सम्बन्धी जो कुछ हमारा ज्ञान है वह सब ब्राह्मण शास्त्रों से ज्ञात हुआ है।' सब पश्चिमी विद्वान् सरल स्वभाव से अपनी अज्ञानता प्रकाशित करते रहे हैं। इस लिए उनके मत की परीक्षा की कुछ आवश्यकता नहीं है ।
शंकराचार्य के समय जैन धर्म का चाल होना इसलिए सत्य नहीं, क्योंकि यह स्वयं जैन धर्म को अति प्राचीन काल से
१. नग्नता की शिक्षा केवल जैन धर्म में ही नहीं बल्कि हिन्दुओं, सिक्खों, मुसलमानों आदि के साधुओं, दरवेशों में भी है। तफसील
२२ परीषह जय खंड २ में देखिये । २. जिसने तुमको बादशाही ताज दिया, उसी ने हमको परेशानी का सामान दिया। जिस किसी में कोई ऐच पाया, उसको लिबास
पहिनाया और जिसमें ऐब न पाये उनको नंगेपन का निवास दिया। ३. लेखक के पूरे लेख को जानने के लिए जन धर्म का महत्व (सूरत) भाग १ पृ. १-१४ ४. जन शासन पृ० ४३० ५. न पठेद्यावनी भाषा प्राणः कण्ठ शतैरपि ।
हस्तिना पीड़यमानोऽपि न गच्छेज्जिनमंदिरम् । अर्थात्-प्राण भी जाते हों तो भी म्लेच्छों की भाषा न पढ़ो और हाथी से पीड़ित होने पर भी जैन मंदिर में न जाओ।