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जैन धर्म गुणों का भण्डार
प्रो. डा० मक्समूलर एम० ए० पी० एच० डी० जैन धर्म अनन्तानन्त गुणों का भण्डार है जिसमें बहुत ही उच्च कोटि का तत्व-फिलास्फा भरा हुमा है। ऐतिहासिक, धार्मिक और साहित्यिक तथा भारत के प्राचीन कथन जानने की इच्छा रखने वाले विद्वानों के लिये जन-धर्म का स्वाध्याय बहुत लाभदायक है।
-इन्सालोपीडिया जैन इतिहास स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य है
रेवरेन्ज जे० स्टीवेन्सन महोदय भारतवर्ष का अधःपतन जैन धर्म के अहिंसा सिद्धान्त के कारण ही नहीं हुआ था, बल्कि जब तक भारतवर्ष में जन धर्म की प्रधानता रही थी, तब तक उसका इतिहास स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है।
-जैन धर्म पर लो. तिलक और प्रसिद्ध विद्वानों का अभिमत, पृ. २७ ।
जैन धर्म से पृथ्वी स्वर्ग हो सकती है
डा० घारो लोटा भोज संस्कृत प्रोफेसर बलिन यूनिवर्सिटी जैन धर्म के सिद्धान्तों पर मुझे दृढ़ विश्वास है कि यदि सब जगह उनका पालन किया जाए तो वह इस पृथ्वी को स्वर्ग बना देंगे। जहाँ तहाँ शान्ति और आनन्द ही आनन्द होगा।
-जैन वीरों का इतिहास और हमारा पतन अन्तिम पृ० ।
यूरोपियन फिलासफर जैन धर्म की सचाई पर नसमस्तक हैं
Prof. Dr. Von Helmuth Von Glasenapp, University Berlin: ने जैन धर्म को क्यों पसन्द किया? जैन धर्म हमें यह सिखाता है कि अपनी आत्मा को संसार के झंझटों से निकाल कर हमेशा की मजात किस प्रकार हासिल की जाये। जैन असूलों ने मेरे हृदय को जीत लिया और मैंने जन फिलास्फो का वाध्याय शरू कर दिया है। आजकल यूरोपियन फ्लासर जैन फलास्फी के कायल हो रहे हैं, और जैन धर्म की सचाई के प्रागे मस्तक झुका रहे हैं।
--रोजाना तेज, देहली २०-१-१९२८.
जैन धर्म की प्राचीनता
डा० फुरहर जैनियों के २२ व तीर्थंकर नेमिनाथ ऐतिहासिक पुरुष माने गये हैं। भगवदगीता के परिशिष्ट में श्रीयुत बरवे इसे स्वीकार करते हैं कि नेमिनाथ श्री कृष्ण के भाई थे जब कि जैनियों के २२वं तीर्थंकर श्री कृष्ण के समकालोन थे तो शेष इक्कीस तीर्थकर श्री कृष्ण के कितने वर्ष पहले होने चाहिए? यह पाठक अनुमान कर सकते हैं।
-एपीग्रेफिका इंडिया व्हाल्यूम २१० २०६-२०७
डा० एन०ए०बी०संट यूरोपियन ऐतिहासिक विद्वानों ने जैन धर्म का भली प्रकार स्वाध्याय नहीं किया इसलिए उन्होंने महावीर स्वामी को जैन धर्म का स्थापक कहा है। हालांकि यह बात स्पष्ट रूप से सिद्ध हो चुकी है कि वे अन्तिम चौवीसव ताथकर थे। इनस पहले अन्य तेईस तीर्थकर हुए जिन्होंने अपने-अपने समय में जैन धर्म का प्रचार किया।
. -जैन गजट मा० १० पृ० ४
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