Book Title: Bhagavana  Mahavira aur unka Tattvadarshan
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 933
________________ उद्योग की काफी उन्नति हुई है । उनके धर्म और समाज सेवा के कार्य सार्वजनिक हित की भावना से ही होते रहे हैं और उनके कार्यों से जनता के सभी वर्गों ने लाभ उठाया है । जैन धर्म देश का बहुत प्राचीन धर्म है । इनके सिद्धान्त महान हैं, और उन सिद्धान्तों का मूल्य उद्धार, अहिंसा और सत्य है। गांधी जी ने अहिंसा और सत्य के जिन सिद्धान्तों को लेकर जीवन भर कार्य किया वही सिद्धान्त जैन धर्म की प्रमुख वस्तु है । जैन धर्म के प्रतिष्ठापकों ने तथा महावीर स्वामी ने अहिंगा के कारण ही सबको प्रेरणा दी थी। जैनियों की ओर से कितनी ही संस्थायें खुली हुई हैं उनकी वियोषता यह है कि सब ही बिना किसी भेद भाव के उनसे लाभ उठाते हैं, यह उनकी सार्वजनिक सेवाओं का ही फल है। जैन धर्म के प्रादर्श बहुत ऊंचे हैं। उनसे ही संसार का कल्याण हो सकता है। जैन धर्म तो करुणा-प्रधान धर्म है। इसलिये जैन चींटी तक की भी रक्षा करने में प्रयत्नशील हैं । दया के लिये हर प्रकार का कष्ट सहन करते हैं । उनमें मनुष्यों के प्रति असमानता के भाव नहीं हो सकते। मैं आशा करता हैं कि देश और व्यापार में जैनियों का जो महत्वपूर्ण भाग है वह सदा रहेगा। -जैन सन्देश यागरा १२-२-१९५१ पृ०२. जैन विचारों की छाप डा० सम्पूर्ण नन्द जी मन्त्री उ० प्र० भारतीय संस्कृति के संवर्धन में उन लोगों ने उल्लेखनीय भाग लिया है जिनको जैन शास्त्रों से स्फूति प्राप्त हुई थी। वास्तु कला, मूर्ति कला, वाइमई सब पर ही जैन विचारों की गहरी छाप है। जैन विद्वानों और थावकों ने जिस प्राणपण से अपने शास्त्रों की रक्षा की थी वह हमारे इतिहास की अमर कहानी है। हमें जैन विचार धारा का परिचय करना ही चाहिये । -जैन धर्म दि० जै० पृ० ११ जैन धर्म का रूप गांधीवाद श्री पी० एस० कुमार रथामी राजा प्रधानमन्त्री, मद्रास जैन धर्म ने संसार को अहिंसा का संदेश दिया राष्ट्रपिता श्री महात्मा गांधी के हाथों में यह सद्गुण शक्तिशाली शास्त्र बन गया, जिसके द्वारा उन्होंने ऐसी आश्चर्यजनक सफलतायें प्राप्त की जिन्हें आज तक विश्व ने देखा ही न था। क्या यह कहना उचित न होगा कि गाँधीवाद जैन धर्म का ही दूसरा रूप है। जिस हद तक जैन धर्म में अहिंसा और सन्यास का पालन किया गया है वह त्याग की एक महान् शिक्षा है। ---वीर देहली भगवान महावीर की शिक्षानों से विश्व कल्याण भगवान महावीर स्वामी ने अपने जीवन में पांच महाव्रतों पर ध्यान दिया था । ये पांच महावत अहिंसा, सत्य, प्रचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह हैं । जैन धर्म के साधओं का इस समय में भी जो गौरव' प्रकट होता रहता है उनके अपरिग्रह और कठिन तपस्या का प्रभाव है। श्री महावीर स्वामी ने शील अथवा अपरिग्रह पर विशेष जोर दिया हम इन पांचों व्रतों को अपने जीवन में उतार सकते हैं। मन, वचन, काय से किसी को हिंसा न करना पाचार विचार और सत्य पर दृढ़ रहना इससे आपका स्वयं अपना ही नहीं बल्कि विश्व का कल्याण साधा जा सकता है। जहरीले जानवरों को जीने का हक भगवान देव आत्मा जी महाराज किसी जहरीले जानघर सांप, बिच्छु वगैरह को देख कर फौरन उसको मारने के लिए तैयार हो जाना कभी ठीक नहीं है जब कोई जहरीला जानवर तुम पर हमला करे और जान की हिफाजत किसी और तरीके से न हो सकती हो तो जान की हिफाजत की खातिर उसे मारना मुनासिब हो सकता है वरना नहीं । यह जमीन केवल तुम्हारी नहीं है सांप, विच्छ, आदि भी कभी-कभी इस पर से गुजर सकते हैं । इसलिए उनको शान्ति से गुजर जाने दो या डरा कर अपनी जगह से भगा दो । याद रखो सांप, प्रादि को भी तब तक जीने का हक हासिल है जब तक वह स्वयं खुद दूसरे की जान पर हमला न करे। -म० देवात्मा की जीवन कथा भाग २१०६७ ८२७

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