Book Title: Bhagavana  Mahavira aur unka Tattvadarshan
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 927
________________ शिकारी हंसा और कहने लगा कि पशुओं का क्या विश्वास ? इस पर हजरत साहब ने फरमाया कि अच्छा हम जामिन हैं। शिकारी ने कहा कि यदि यह वापिस न पाई तो तुम्हें इसकी जगह शिकारे अजल बनना पड़ेगा। इस पर प्राप मुस्कराये और फरमाया इस वक्त यही शर्त सही, जिसको खुदा दे। हम पर लगाते हैं, तु ईमान लगा दे।। शिकारी ने हज़रत मोहम्मद साहब की जमानत पर हिरणी को छोड़ दिया, वह भागती हुई अपने बच्चों के पास गई और उन्हें दूध पिलाकर कहा.. -"यह हमारी तुम्हारी आखिरी मुलाकात है, एक शिकारी ने मुझे पकड़ लिया था, एक महापुरुष ने अपने जीवन की जमानत पर छुड़वाया है।" हिरणी ने वापिस आकर हजरत मोहम्मद साहब को धन्यवाद दिया और शिकारी से कहा कि अब मैं जिधे होने को तैयार हैं। शिकारी पर उसके शब्दों का इतना प्रभाव पड़ा कि उसने सदा के लिये हिरणी को छोड़ दिया । बास्तव में हज़रत मोहम्मद साहब बड़े दयाल थे उन्होंने अहिंसा धर्म का प्रचार किया। यह तो उनके जीवन का केवल एक ही दृष्टान्त है। यदि उनके जीवन की खोज की जाये तो किसी को भी उनके अहिंसा प्रेमी होने में सन्देह न रहे । श्री गुरु नानकदेव का हिसा-प्रचार जब कपड़ों पर खून के छोट लग मारवे नमार हो जाने को । से लिप्त मांस खाते है, उनका हृदय कसे शुद्ध और पवित्र रह सकता है। ६८ तोर्थों की यात्रा से भी इतना फल प्राप्त नहीं होता जितना अहिंसा और दया से होता है। जिस के हृदय में दया नहीं वह महा विद्वान् होने पर भी मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। जब मरे हुए बकरे की खाल से लोहा भस्म हो जाता है, तो जो जीवित बकरे को मार कर खाते हैं उनकी दशा क्या होगी? जहा मांस भक्षण होता है वहां दया धर्म नहीं रह सकता। यह झठी कल्पना है कि थोड़े से पाप' कर लेने में क्या हर्ज हैं, क्योंकि अधिक पुण्य करके उस थोडे से पाप को धोया जा सकता है। पवित्र ग्रन्थ साहब में तो यहां तक उल्लेख है कि यदि जीवों की हत्या करना धर्म है तो अधर्म क्या है। गुरु नानकदेव मांस भक्षण के विरोधी थे। वे एक दिन घूमते हुए एक जंगल में जा निकले। वहाँ के लोगों ने उनसे भोजन के लिये कहा तो गुरु जी ने फरमाया "यों नहीं तुमरो खायें कदापि, हो राब जीवन के सन्तापी। प्रथम तजों ग्रामिष का खाना, करो जास हित जीवन हाना ।।" -मानक प्रकाश पूर्वार्ध अध्याय ५५ अर्थात हम तुम्हारे यहां कदापि भोजन नहीं कर सकते, क्योंकि तुम जीव हिंसा करते हो। जब तक तुम मांस भक्षण का त्याग न करोगे, तुम्हारे जीवन का कल्याण न हो सकेगा। महाष दयानन्द जी का वीर सिद्धान्त से प्रेम स्वामी दयानन्दजी ने मांस, मदिरा तथा मधु के त्याग की शिक्षा दो' । ओर वस्त्र से पानी छानकर पीने का उपदेश दिया। घेदतीर्थ प्राचार्य श्री नरदेव' जी शास्त्री के शब्दों में स्वामी दयानन्द जी यह स्वीकार करते थे कि श्री महावीर स्वामी ने अहिंसा आदि जिन उच्च कोटि के अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है, वे सब वेदों में विद्यमान हैं । और बताया है कि भगवान महावीर की अहिसा दुर्बल अहिसा नहीं थी, किन्तु संसार के प्रवल से प्रबल महापुरुष की अहिंसा थी वैदिक शब्दों में कहा जाये तो "मित्रस्य चक्षुषा समीक्षा महे" है। महाराजा भर्तृहरि को दिगम्बर होने की भावना एको रागिषु राजते प्रियतमा देहाधंधारी हरी, नीरागेष जिना बिभुक्तललना संगो न यस्मास्परः॥ १. सत्यार्थप्रकाश मुल्लास-३-१० | २. "बिन हने जल का त्याग" हण्ट २। ३-४ वेदतीर्थ आचार्य श्री नरदेय : जन संदेश आगरा (२६ जून १९४५, पृ० १४।) १२१

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