________________
यह निश्चय' हो रहा है कि हजरत ईसा जब १३ वर्ष के हए और उनके घर वालों ने उनके विवाह के लिए मजबूर किया तो बह घर छोड़ कर कूछ सौदागरों के साथ सिंघ के रास्ते भारत में चने आये थे। वह ज सत्य के खोजी और सांसारिक भोग बिलासों से उदासीन थे । भारत में आकर बह बहुत दिनों तक जन साधुनों के साथ रहे, प्रभु ईसा ने अपने प्राचार विचार को मूल शिक्षा जैन साधुओं से प्राप्त की थी।
महात्मा ईसा ने जिस पैलस्टाइन में जाकर ४० दिन के उपवास द्वारा प्रात्मज्ञान प्राप्त किया था, वह प्रसिद्ध यहदी मि० जाजक्स के अनुसार जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ पालिताना है जहां हजरत ईसा मसीह ने तपस्या की थी और जैन शिक्षा ग्रहण की थी उसी पालिताना के नाम पर पैलिस्टाइन बस गया था। बहुत दिनों तक जैन साघरों की संगति में रख कर बह फिर नेपाल और हिमालय होते हुए ईरान चले गये और वहां से अपने देश में आकर उन्होंने अहिंसा और विश्व प्रम का प्रचार चालू कर दिया। उन्होंने जिन तीन विशेष सिद्धान्तों (१) प्रात्मा और परमात्मा को एकता (२) आत्मा का अमरत्व, (३) प्रात्मा के दिव्य स्वरूप का उपदेश दिया था, ये यहूदी संस्कृति से सम्बन्ध नहीं रखते, बल्कि जैन संस्कृति के मूलाधार हैं।
जिसने दया नहीं की, कयामत के दिन उस पर भी दया नहीं होगी । जो दूसरों के गले पर छुरियां चलाते हैं, उनको अधिकार नहीं कि पाक अन्जील को अपने नापाक हाथों में ले । धिक्कार है उन पर जो खुदा के नाम पर कुर्बानी करते हैं 1 तु किसी का खून मत कर । यदि जीव की हत्या करने के कारण तुम्हारे हाथ खून से भरे हुए हैं तो मैं तुम्हारी तरफ से अपनी आँखे बन्द कर लगा और प्रार्थना करने पर भी ध्यान न दूंगा । ये शिक्षायें जैन धर्म के सिद्धान्त से मिलती जुलती हैं ।
महात्मा श्री जरदोस्त की हिसामयी शिक्षा बेजबान पशुओं की हत्या करना पारसी धर्म में बहुत बड़ा गुनाह है। पुज्य गुरु श्री जरदोस्त मांस त्यागी थे। और उन्होंने दूसरों को भी मांस त्याग की शिक्षा दी। सेठ रुस्तम ने तो अण्डा तक खाना भी पार बताया है, उनका विश्वास है कि अक्षण मेनु गाभापा तथा प्रेम भावना नष्ट हो जाती है 1 जो दूसरों से अधिक बोझ उठवाते हैं वे ऊँट, घोड़ा, बैल आदि अधिक बोझ के कष्टों को सहन करने वाले पशु होते हैं । जो अपने स्वार्थ या दिल्लगी के कारण भी किसी को सताते हैं, दोजख को पाग में बुरी तरह तड़फते हैं । ईरानी कवि 'फिरदोसी' के शब्दों में पा हत्या म करना, शिकार न खेलना, मांस भक्षण न करना हो पारसी धर्म के गुण हैं। महात्मा जरदोस्त का तो फरमान है कि बच्चा जवान या बुढ़ा किसी भी प्रकार की जीव हिसा उचित नहीं है।
हजरत मोहम्मद साहब का अहिसा से प्रेम अरब में जैनियों द्वारा अहिंसा का प्रचार अवश्य किया गया था। हजरत मोहम्मद अहिंसा धर्म के प्रभाव से अछते नहीं थे । उनका अन्तिम जीवन महा अहिंसक था। वे के बल एक लबादा रखते थे । खुरमा रोटी और दूध का ही उनका भोजन था । उन्होंने अपने अनुयायियों को अहिसामय व्यवहार का उपदेश दिया था। आज भी जो मुसलमान मक्का शरीफ की यात्रा को जाते हैं, जब तक वहाँ रहते हैं, वे मांस नहीं खाते, नंगे पाँव जयारत करते हैं । जू भी कपड़ों में हो जाय तो उसे मारना तो बड़ी बात है कपड़ों तक से नीचे नहीं गिराते ।
अपने कलाम हदीस में हजरत मोहम्मह साहब ने फरमाया कि यदि तुम जग के प्राणियों पर दया (अहिंसा) करोगे तो खुदा तुम पर दया करेगा। थोड़ी-सी दया (अहिंसा) बहुत-सी इबादत (भक्ति से) अच्छी है । कुर्बानी का मांस और खून खुदा को नहीं पहुंचाता, बल्कि तुम्हारी परेजगारी (पवित्रता) पहुँचती है।
एक शिकारी एक हिरणी को पकड़ कर ले जा रहा था । रास्ते में हजरत मोहम्मद साहब मिल गये। हिरणी ने उनसे कहा कि मेरे बच्चे भूखे हैं, थोड़ी देर के लिये मुझे छड़बादो, बच्चों को दूध पिलाकर मैं तुरन्त वापिस आ जाऊँगी। हिरणी के दर्द भरे शब्दों से हज़रत मोहम्मद साहब का हृदय पसीज गया, हिरणी की बेबसी को देखकर उनकी प्रांखों में आंसू मा गये और उन्होंने शिकारी से कहा
"हैवान है पर अन्देशाये वहशत जरा न कर। अाती है वह बच्चों को अभी दूध पिलाकर ।।