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नाहं रामो न मे वाम्छा भावेषु न च मे मनः। शांभासितुमिच्छामि स्वात्मनांव जिनो यथा ॥६॥
___---योगवासिष्ठ वैराग्य प्रकरण सर्ग १५ पृष्ठ ३३ मैं न राम है और न मेरी बाञ्छा संसारी पदार्थों में है ।मैं तो जिनेन्द्र भगवान के समान अपनी प्रात्मा में वीतरागता और शान्ति की प्राप्ति का अभिलाषी हूं।
श्री रामचन्द्र जी की यह उत्तम भावना उनके हृदय की सच्ची आवाज थी, राजपाट को लात मार कर चारण ऋद्धि के धारक स्वामी सुव्रत नाम के जैन मुनि से जिन दीक्षा धारण कर ये जैन साधु हो गये और केवल ज्ञान प्राप्त करके जिन (जिनेन्द्र) हुए और संसार को जैन धर्म का उपदेश देकर तुंगीगिरि पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया । इसी कारण जैन भगवान महावीर के समान श्री रामचन्द्र जी की भी भक्ति और वन्दना करते हैं।
उनके पिता महाराजा दशरथ भी जब तक गृहस्थ में रहे, श्रमणों (जैन साधुनों) को प्राहार देते थे और जब जन साधु हए तो घोर तप करने लगे। और सती सीता जी भी जैन साधु का हो गई थीं।
यही कारण है कि भगवान महावीर की दष्टि में श्री रामचन्द्र जी का जीवन चरित्र पाप रूपी अंधेरे को दर करने के लिए कभी मन्द न पड़ने वाले सूर्य के समान बतायाः--
श्री मद्रामचरित्रमुत्तममिदं नानाकथापूरितम् । पापध्वान्तविनाशनकतरणी कारुण्यबल्लीवनम् । भव्यश्रणिमनः प्रमोदसदनं भक्त्याना कीर्तितम् । नानासत्पुरुषलिवेष्ठित युतं पुण्यं शुभं पावनम् ॥१८०।। श्री वर्धमानेन जिनेश्वरेण त्रैलोक्यवन्धेन यदुक्तभादौ ततः परं गौतमसंज्ञकेन गणेश्वरेण प्रथितं जनानां ।।१५।
श्री जिनसेनाचार्यः रामचरित्र अर्थात्-श्री गौतम गन्धर्व के शब्दों में तीन लोक के पूज्य श्री महावीर की दृष्टि में श्री रामचन्द्र जी का चरित्र परम सन्दर, अति मनोहर, महा कल्याणकारी और पाप रूपी अन्धेरे को दूर करने के लिए कभी मन्द न पड़ने वाला चमकता हुआ सर्य है। अहिसा रूपी जहाज को चलाने के लिए बल्ली के समान है। इसमें सीता, सुग्रीव, हनुमान और बाली प्रादि अनेक महापुरुषों के कथन शामिल होने के कारण महापुण्य रूप है और सज्जन पुरुषों के हृदय को शुद्ध व पवित्र करने वाला है।
श्री हनुमान जी की जैन धर्म प्रभावना श्री हनुमान जी आदिपुर के राजा पवनंजय के सुपुत्र थे। इनकी माता का नाम अन्जना सुन्दरी था, जो महेन्द्रपुर के राजा श्री महेन्द्रकुमार की राजकुमारी थी।
हनुमान जी के जन्मते ही उनकी माता सहित उनके मामा श्री अतिसूर्य विमान में बैठाकर अपने हुण देश में ले जा रहे थे कि बे खेलते हुए माता की गोद से उछल कर विमान से गिर पड़े। आकाश से एक जन्मते बालक का नीचे पृथ्वी पर गिरना उसकी माता के लिए कितना दु:खदाई हो सकता है ? परन्तु अन्जना सुन्दरी को गर्भ के समय ही एक जैन मुनि ने वता दिया था कि तुम्हारे चर्म शरीरी महापुरुष उत्पन्न होगा जो इसी भव से मोक्ष जायेगा । इसलिए उसको विश्वास था कि दिगम्बर जैन साधु के वचन कदापि झूठे महीं हो सकते । उसका पुत्र जीवित है, विमान से पृथ्वी पर उतरे तो उन्होंने देखा कि श्री हनुमान जी बड़े आनन्द के साथ अपने पांव का अगंठा चूस रहे हैं और जिस सुदृढ़ तथा विशाल पर्वत पर गिरे थे, बह खण्ड-खण्ड हो गया है । माता अंजना सुन्दरी ने प्रेम से हनुमान जी को छाती से लगाया और उनकी इतनी प्रभावशाली शक्ति को देख कर उनका नाम महावीर रक्खा, परन्तु जब हुण देश की राजधानी में उनका पहला जन्मोन्सव मनाया गया तो हण देश के नाम पर इनका नाम श्री हनुमान जी प्रसिद्ध हो गया।
हनुमान जी वानरबंशी नरेश थे, वानर चिन्ह उनके झण्डे की पहिचान थी। कुछ लोग उनको सचमुच बानर जाति का समझते हैं, परन्तु वास्तव में वे महा सुन्दर कामदेव और मानव जति के ही महापुरुष थे।
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