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वस्तयों का यथार्थ रूप विचित किया था इसीलिए वस्तुस्थिति के अनुरूप में ही उनका उपदेश था । उन्होंने किसी नबीन मत की स्थापना नहीं की थी, बल्कि प्राचीन जैन धर्म को पूनः जीवित किया था। जैन धर्म का अस्तित्व उनसे भी पहने विद्यमान था, परन्तु भगवान महावीर के समय में उमको विशेष प्रधानता प्राप्त नहीं थी, इसलिए भगवान महावीर के द्वारा समयानुसार उसका पुनः निरूपण हुआ था। यह सनातन धर्म अव्याबाध सर्व सुखकारी और अमर जीवन को प्रदान करने वाला था। जिस तरह वस्तु की मर्यादा थी उसी तरह उसमें बताई गई थी। यहो धर्म प्राज जैन धर्म के नाम से विख्यात है।
इस तरह भगवान महावीर सर्वज्ञ थे और उनका धर्म यथार्थ सत्य था। यह मान्यता केवल जैनों को हो नहीं है, प्रत्यत वौद्ध और ब्राह्मण शास्त्र भी इस ही बात की पुष्टि करते है । एक बार म. बुद्ध ने स्वयं कहा था
भाइयो! कुछ ऐसे सन्यासी हैं, (अचेलक, माजीबिक निग्रंथ मादि) जो ऐसा श्रद्धान रखते और उपदेश करते है कि प्राणी जो कुछ सुख दु:ख व समभाव का अनुभव करता है वह सब पूर्व कर्म के निमित्त से होता है 1 पोर तपश्चरण से पूर्व कर्म के नाम से, और नये कर्मों के न करने से, प्राधव के रोकने से कर्म का क्षय होता है और इस प्रकार पाप का क्षय और सर्व दःख का विनाश है। भाइयो, यह मिर्ग्रन्थ (जन) कहते हैं......मैंने उनसे पूछा क्या यह सच है कि तुम्हारा ऐसा घद्धान है और तम इसका प्रचार करते हो......उन्होंने उत्तर दिया......हमारे गुरु नातपुत्त सवज्ञ है ....उन्होंने अपने गहन ज्ञान से इस का उपदेश दिया है कि तुमने पूर्व में पाप किया है, इसको तुम उग्र पीर दुस्सह आचार से दूर करो और जो आचार मन, वचन, काय से किया जाता है उससे अागामी जन्म में बुरे कर्म कट जाते हैं...इस प्रकार सबं ऋर्म अन्त में क्षय हो जायंग और सारे दुःख का विनाश होगा । इस सत्र से हम सहमत हैं।
(मज्झिम २।२१४) इय उद्धरण में स्पष्ट रीति से भगवान महावीर की सर्वज्ञता और उनके द्वारा प्रतिपादित धर्म सिद्धान्तों को स्वीकार किया गया है। वास्तव में भगवान महावोर ने इन्हीं बाता का उपदेश दिया था, जिनका उल्लेख उक्त उद्धरण में हैं। इसीलिए यह भी प्रत्यक्ष है कि ग्राज जो जैन धर्म प्राप्त है वह मुल' में वही है जिसका प्रतिपादन भगवान महावीर ने किया था। हां, उसके वाह्यभेष में अन्तर पड़ा हो तो कोई विस्मय नहीं।
भगवान महावीर की सर्वज्ञता के सम्बन्ध में प्राजकल के विद्वान् भी हमारे उपरोक्त कथन का समर्थन करते हैं । डा. विमलचरण लाल एम० ए० पी० एच० डी० आदि बौद्ध ग्रन्थों के सहारे से लिखते हैं कि ये भगवान सर्वज्ञ सर्वदर्शी, अनन्त केवलज्ञान के घारी चलते-बैठते सोते जागते सब समयों में सर्वज्ञ थे । वे जानते थे कि किसने किस प्रकार का पाप किया है और किसने पाप नहीं किया है। वे प्रख्यात ज्ञात्रिक महावीर अपने शिष्यों के पूर्वभव भी बता सकते थे। पाप ही बौद्धों के संयुक्त' निकाय में लिखा बतलाते हैं कि 'ज्ञात्रि क्षत्रिय' महाबीर बहुत ही होशियार और परम विद्वान् एक दातार पुरुष चतुर्पकार से इन्द्रिय निग्रह में दत्तचिन और स्वयं देखी मुनी वस्तुओं को बतलाने वाले थे। जनता उनको बहुत ही पूज्य दृष्टि से देखती थी। एक अन्य विहान बौद्धों के सिहल मान्यता के आधार में, भगवान महावीर के अनन्तज्ञान के सम्बन्ध में कहते हैं कि वे महावीर अपने को पाप रहित बतलाने थमौर वह घोषणा करते थे कि जिस किसी को कोई शंका हो अथवा किसो विषय का समाधान करना दो बस हमारे पास याये, हम उसको अन्छी तरह समझा दंगे। इसका भाव' यही है कि भगवान प्राकृत रूप में अपने धवल केवल ज्ञान में लोगों का पूर्ण समाधान कर देते थे, वे पूर्ण सर्वज्ञ थे—उन्हें सशंक होने को कोई कारण शेष नहीं था।
इस प्रकार भगवान महावीर और म० बुद्ध के धर्म प्रवर्तक रूप में भी एक समान दर्शन नहीं होते। भगवान महावीर ने सर्वज्ञ होने पर किसी नवीन मत की स्थापना नहीं की थी। म० बुद्ध ने 'मध्य मार्ग' को बोधिवृक्ष के निवाट जान लेने पर एक नवीन मत की स्थापना की थी। जिस प्रकार प्रारम्भ से ही इन दोनों युगप्रधान पुरुषों के जीवन में कोई विशेष साम्यता नहीं थी उसी प्रकार अवस्था में भी हमटो कोई समानता देखने को नहीं मिलती म० बुद्ध ने अपनो ३५ वर्ष को अवस्था से ही अपने धर्म का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया था और भगवान महावीर ने तब तक कोई उपदेश नहीं दिया जब तक कि उन्होंने करीब ४३ वर्ष की अवस्था में उक्त प्रकार सर्वज्ञता प्राप्त न कर लो । फिर धर्म प्रचार के लिए जो उन्होंने सर्वत्र बिहार किया था. वह भी एक-दूसरे से बिल्कुल विभिन्न था। म० बुद्ध ने बोधिवृक्ष से चलकर सर्वप्रथम वनारस में उपदेश दिया था। और फिर वे क्रमशः उरुवेला, गयासीस, राजगृह, कपिलवस्तु, थावस्ती, राजगृह, कोदनावत्थु, राजगृह प्रावस्तो, राजगृह बनारस, भद्दिय, श्रावस्ती, राजगृह श्रावस्ती, राजगह, बनारस, अन्धकविन्दु, राजगृह, पाटलिगाम, कोटिगाम नातिका आपन, कुसीनारा मातूम, श्रावस्ती, राजगृह, दक्षिणागिरी, वैशाली, बनारस, श्रावस्ती, चम्पा, कोशालम्बी, परिल व्यक, श्रावस्ती, बालकोलोन्कर- .