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इसके अतिरिक्त हम म० युद्ध के बाल्यपन के विवरण में देख चुके हैं कि म० बुद्ध जो उस मुकुमार अवस्था में चार प्रकार के लक्षण धारण करते थे उनमें तीन तो जैन तीर्थकरों के चिह्न थे, परन्तु चोवा स्वयं भगवान महावीर वर्तमान का नाम या । इससे यह झलकता है कि उस समय भगवान का जन्म नहीं हुआ था। यदि जन्म हुआ होता तो उनका उल्लेख भी चिह्न रूप में होता, क्योंकि जन्म से ही तीर्थंकर भगवान के पग में यह चिह्न होता है। अतएव इससे भी म० बुद्ध का जन्म भगवान महावीर से पहले हुआ प्रमाणित होता है ।
डा० हार्नले साहब की गणना का समर्थन उस कारण को जानने से भी होता है, जिसकी वजह से म० बुद्ध के ५० से ७० वर्ष के मध्य जीवन की घटनाओं का उल्लेख नहीं के बराबर हो मिलता है। रेवरेन्द्र वामनन्ट साहब का कथन है कि यह अन्तराल प्रायः घटनामों के उल्लेख से कोरा है। अतएव इस प्रभाव का कोई कारण अवश्य होना चाहिए। अब यदि वहा भी हम डा० हार्नने साहब की उक्त गणना को मानता देवें तो यह कारण भी ज्ञात हो जाता है, क्योंकि जब भगवान महाबीर ने अपना धर्म प्रचार प्रारम्भ किया था। उस समय म० वृद्ध अपने धर्म को घोषणा कर चुके थे और अनुमानत: ४५ वर्ष के थे जैसे कि हम देख चुके हैं। अतएव पांच वर्ष के भीतर-भीतर महावीर के वस्तुस्थिति रूप उपदेश का दिगन्तव्यापी हो जाना बिल्कुल प्राकृत है इस दशा में यदि इन पांच वर्षों में म० बुद्धका प्रभाव प्रायः उठसा जाये और उनकी ५० वर्ष को उमर से 130 वर्ष तक कोई पूर्ण घटनाक्रम न मिले तो कोई आश्चर्य नहीं है। यही समय भगवान महावीर के धर्म प्रचार का था। इसलिए म० बुद्ध के जीवन के उक्त अन्तराल काल की घटनाओं के प्रभाव का कारण भगवान महावीर का सर्वज्ञावस्था में प्रचार करना ही प्रतिभाषित होता है। इस अवस्था में हमको डा० हानले साहब की उक्त गणना इस तरह भी प्रमाणित मिलती है और यह प्रायः ठीक ही है कि भगवान महावीर के निर्वाणोपरान्त म बुद्ध अधिक से अधिक पांच वर्ष और जिये थे।
किन्तु उक्त प्रकार म बुद्ध की जीवन घटनाओं के का कारण निर्दिष्ट करते हुए बद्ध शास्त्रकार के इस कथन का भी समाधान कर लेना आवश्यक है कि म० बुद्ध के धर्मोपदेश के समक्ष निर्ग्रन्थ नातपुत्त ( महावीर ) का प्रभाव क्षीण हो क्या, जो पहिले विशेष प्रभाव को लिए हुए था बौद्ध शास्त्रकार के इस कथन के समान ही जैनाचार्य ने भी यही बात भगवान महावीर के विषय में कही है कि उनमें धर्मोपदेश के उदय होते ही एकान्तमत अंधकार में विलीन हो गये। इस दशा में यह दोनों कथन एक दूसरे के विरुद्ध पड़ते हैं परन्तु उक्त प्रकार भ० बुद्ध की जीवन घटनाओं के प्रभाव का कारण भगवान महावीर का धवल धर्म प्रभाव मानते हुए हमें जैनाचार्य का कवन पाता को लिए ये मिलता है, परन्तु ऐतिहासिकता के नाते हम बौद्ध शास्त्रकार के कथन को भी एक दम नहीं भुला सकते हैं। बात वास्तव में यों मालूम देती है कि जिस समय भगवान महावीर का धर्म प्रचार होता रहा, उस समय अवश्य ही उनके प्रभाव के समक्ष रोप धर्म अपनी महता को धो बैठे जैसा कि जैनाचार्य कहते हैं और जो म० वृद्ध के सम्बन्ध में ऊपर एवं निम्न की भाँति प्रमाणित होता है, परन्तु जब भगवान महावीर का निर्वाण होने को था तब हमको मालूम है कि राजा कुणिक अजातशत्रु जैन धर्म के विमुख हो गया था। इसके जैन धर्म विमुख होने का कारण सम्राट श्रेणिक की अकाल मृत्यु और वज्जियन राज्य पर आक्रमण करना कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्षायिक सम्यक्त्व सम्राट श्रेणिक मरण का कारण वनकर एवं भगवान महावीर के पितृ और मातृ कुलों पर आक्र मण करके सम्राट कुणिक प्रजातशत्रु ग्रवश्य ही जैनियों द्वारा घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा होगा। ऐसे अवसर पर बौद्ध भिक्षु देवदत्त, जिसका सम्बन्ध इनसे पहले का ही था, यदि अजातशत्रु को बौद्धनुयायी बना लें तो कोई श्रद्भुत बात नहीं है, सम्राट कुणिक अजातशत्रु के धीद्ध हो जाने से मगध और पन का राजधर्म जो पहिले जनपथावश्य ही तौद्ध धर्मी हो गया और यह भगवान महावीर के शासन प्रभावना में एक खासा धक्का था। फिर लगभग इस समय के कुछ बाद ही भगवान महावीर का निर्वाण हुआ था यह हमारे ऊपर के कथन से प्रगट है। इसके साथ ही कुछ समय के उपरान्त आजीवकों के संरक्षक राजा पद्म द्वारा जैनियों का सताया जाना, श्रवश्य ही ऐसे कारण हैं, जो हमें इस बात को मानने के लिए बाध्य करते हैं कि वीर शासन का प्रभाव भगवान महावीर के उपरान्त ही किति फीका पड़ गया था और इस तरह पर बौद्धाचार्य का कचन भी ठीक बैठ जाता है। अतएव जैन और बौद्धाचायों के उपरोल्लिखित मत हमारी इस मान्यता में वायक नहीं है कि भगवान महावीर के दिव्योपदेश के कारण म० बुद्ध का प्रभाव बहुत कुछ कम हो गया था कि जिससे उनके जीवन के उस अन्तराल काल का प्रायः पूरा पता नहीं चलता। उधर भगवान महावीर के दिव्य प्रभाव को वौद्धाचार्य स्वीकार करते ही हैं । भगवान महावीर के धर्मोपदेश का विशेष प्रभाव म० वृद्ध के जीवन में बाड़ा आया था, इसका समर्थन स्वयं बौद्ध ग्रन्थों से भी होता है । देवदत्त द्वारा जो विच्छेद बौद्धसंघ में भगवान महावीर के निर्वाण काल के दो तीन वर्ष पहले ही खड़
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