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पारस्परकि काल निर्णय
भगवान महावीर और
बुद्ध के पारस्परिक जीवन का हम तुलनात्मक रीति से अध्ययन कर चुके हैं और हमने उसमें कहीं भी साम्यता नहीं पाई है प्रत्युत जीवन घटनाओं की विभिन्नता हो सर्वथा दृष्टि पड़ती रही है। ऐसी अवस्था में यह स्पष्ट है कि भगवान महावीर और म० बुद्ध एक हो व्यक्ति न होकर दो समकालीन युगप्रवान पुरुष थे। समकालीन अवस्था में भी इनके जीवनों का पारस्परिक सभ्यन्यण. यह जानना भी पाया है परन्तु भारतीय इतिहास जितना स्पष्ट और अंधकारमय है उसको देखते हुए आज से करीब ढाई हजार वर्ष पहले हुए युग प्रधान पुरुषों के पारस्परिक जीवन सम्बन्धों का ठीक पता लगा लेना बिल्कुल सम्भव बात है तो भी जो साहित्य सामग्री उपलब्ध है । उसका प्राश्रय लेकर हम इस विषय में एक निर्णय पर पहुँचने का प्रयत्न करेंगे ।
यह हमको मालूम है कि भगवान महावीर को निर्वाण लाभ उस समय प्राप्त हुआ था जब वे करीब बहत्तर वर्ष के थे और म० बुद्ध का परिनिम्यान जैसा कि बौद्ध कहते हैं, उनकी अस्सी वर्ष की अवस्था में हुआ था। इससे यह बिल्कुल स्पष्ट है कि म० युद्ध की उमर भगवान महावीर से अधिक थी 1 अब इन दोनों युग प्रधान पुरुषों के जन्म समय में कितना अन्तर था. यह जानना है। उनका पारस्परिक जन्म अन्तर प्राप्त होने के साथ ही हमको उसकी अन्य जीवन घटनाओं का सम्वन्ध स्पष्टतः ज्ञात हो जायगा ।
इस विषय में डा० हानले साहब ने विशेष अध्ययन के उपरांत यह निर्णय प्रगट किया है कि भगवान महावीर के निर्माण लाभ के पश्चात् पांच वर्ष तक म० बुद्ध और जीवित रहे थे। इस मान्यता को मान देते हुए हमें म० बुद्ध का जन्म भगवान महावीर के जन्म से तीन वर्ष पहले हुआ प्रमाणित मिलता है। दूसरे शब्दों में डा० हानले साहब की गणना के अनुसार म० बुद्ध भगवान महावीर के जन्म के समय तीन वर्ष के थे, उनके गृह त्याग के अवसर पर वे तैतीस वर्ष के थे और जब भगवान महावीर ने अपनी करीब विद्यालीस वर्ष की अवस्था में सर्वशता प्राप्त कर चुकने पर उपदेश देना प्रारंभ किया तब वे प्रायः तालीस वर्ष के थे । इसी तरह जब म० बुद्ध ने अपनी पैंतीस वर्ष की उमर में “मध्यमार्ग" का उपदेश देना प्रारंभ किया था, तब भगवान महावीर करीब तँतीस वर्ष के थे। इस प्रकार डा० हानले की मान्यता के अनुसार इन दोनों युगप्रधान पुरुषों के पारस्परिक सम्बन्ध ज्ञात होते हैं, किन्तु इनको विशेष प्रमाणिक जानने के लिए डा० हार्वले साहब की गणना के श्रीचित्य पर भी एक दृष्टि डाल लेना आवश्यक है ।
डा० हानले साहय जो इस गणना पर पहुंचे हैं वह विशेष प्रमाणों को लिए हुए हैं। तथापि उनकी इस गणना का समर्थन ऐतिहासिक साक्षी से भी होता है। प्रो० कने सा० के मतानुसार सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की मृत्यु उस समय हुई थी जब म बुद्ध बहत्तर वर्ष के थे धौर देवदत द्वारा जो बौद्ध सप में विच्छेद सड़ा हुआ था वह इस घटना से कुछ ही काल उपरान्त उपस्थित हुआ था। साथ ही मज्झिमनिकाय के अभय राजकुमार सुत्त से यह स्पष्ट है कि भगवान महावीर को बीद्ध संघ के विच्छेद का ज्ञान था । दि० जैन शास्त्रों से भी इस व्याख्या की पुष्टि इस तरह होती है उनमें लिखा है कि सम्राट् श्रेणिक विम्बसार की मृत्यु के साथ ही कुणिक अजात शत्रु विधम मिध्यात्वी हो गया और रानी बेसना ने भगवान महावीर के समवशरण में जाकर आर्या चन्दना के निकट दीक्षा ग्रहण की। इससे यह साफ प्रगट है कि भगवान महावीर इस समय विद्यमान थे और बौद्धों के सामयग्राममुत्त और पाकिसुत से यह प्रमाणित ही है कि भगवान महावीर के निर्वाणलाभ के उपरान्त कुछ काल तक म० बुद्ध जीवित रहे थे। इसलिए वह अधिक से अधिक पांच वर्ष ही जीवित रहे होंगे। क्योंकि बौद्ध और जैन दोनों के मत से सम्राट क्षणिक विम्बसार की मृत्यु के समय भगवान महावीर मौजूद थे। और जब म० बुद्ध इस समय ७२ वर्ष के थे तो भगवान महावीर अवश्य ही करीब ६६ वर्ष के थे। इससे यह स्पष्ट है कि भगवान महावीर के निर्वाणलाभ करने के बाद म० बुद्ध पांच वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहे थे।
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