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तीसरे उदयगिरि पर एक मन्दिर है। इसमें श्री शालिनाथ और पार्श्वनाथ स्वामी की प्राचीन प्रतिमायें एवं आदिनाथ स्वामी के चरण चिह्न हैं। एका महावीर स्वामी की भी खड्गागन श्यामवर्ण प्राचीन प्रतिमा है। यह नया मन्दिर भी कलकत्ता निवासी श्रीमान सेठ रामबल्लभ रामेश्वर जी की ओर से बना है।
चौथे स्वर्णगिरि पर दो मंदिर है। एक मदिर फिरोजपुर निवासी लाल तुलसीराम ने बनवाया है। इस नये मंदिर में शांतिनाथ स्वामी की श्यामवर्ण की प्रतिमा तथा नेमिनाथ और आदिनाथ स्वामी के चरण चिन्ह हैं । यहाँ एक प्राचीन खड्गासन मति भी है। पुराने मन्दिर में भी भगवान महावीर के नवीन चरण चिन्ह हैं। यह मन्दिर छोटा-सा और पुराना है।
पांचव बंभारगिरि पर एक मन्दिर है। यहाँ पर एक चौबीसी प्रतिमा महावीर स्वामी, नेमिनाथ स्वामी प्रौर मनिसुव्रत स्वामी की श्यामवर्ण की प्राचीन प्रतिमाएं हैं। मेमिनाथ स्वामी के चरण चिन्ह भी हैं।
पहाडी के नीचे दो मंदिर हैं। एक मंदिर धर्मशाला के भीतर है तथा दरारा धर्मशाला के बाहर विशाल बगीचे में । बाहर वाले मंदिर को देहली निवासी लाला न्यादरमल धर्मदास जी ने एक लाख रुपये से ६ फरवरी सन् १९२५ में बनवाया है इस मंदिर में पांच बेदिकाये हैं। पहली बेदी के बीच में श्यामवर्ण नेमिनाथ स्वामी की प्रतिमा है, यह पदमासन मति डेढ़ फुट ऊंची सम्वत् १९८० में प्रतिष्टित की गई है। इसके दायीं ओर शांतिनाथ स्वामी और वायी ओर महावीर स्वामी की प्रतिमाएँ हैं। ये दोनों प्रतिमाएं विक्रम की २० वीं शदी की है। इस वेदिका में धातुमयी कई छोटी-छोटी मतियाँ है. जो सं० १७८१ की है। इस वेदी में दो चाँदी की भी प्रतिमाएं हैं।
दसरी बेदी में चन्द्रप्रभ स्वामी की श्वेतवर्ण की ३ फीट ऊँची प्रतिमा है इसकी प्रतिष्ठा वी० सं० २४४९ में हुई है । चतुर्मुखी धातु प्रतिमा भी इस वेदी में है।
मध्य की वेदी सबसे बड़ी वेदो है, इस पर सुनहला कार्य कलापूर्ण हुमा है । वेदी के मध्य में मुनिसुव्रतनाथ की श्यामवर्ण की प्रतिमा, इसके दाहिनी ओर अजितनाथ की अोर वायीं और संभवनाथ की प्रतिभा है। ये प्रतिमाएँ भी वि० सं० १९८० की प्रतिष्ठिता हैं । चौथी में विक्रम संवत् १९७६ की प्रतिष्ठित चन्द्र प्रभु और शांतिनाथ की प्रतिमाएँ हैं। पांचवीं वेदी के बीच में कमल पर महावीर स्वामी को बादामी रंग की वि० सं० २४६२ की प्रतिष्ठित प्रतिमा है। इसमें ग्रादिनाथ शीतलनाथ की भी प्रतिमाएं हैं।
धर्मशाला के भीतर का छोटा मन्दिर गिरिडीह निवासी सेठ हजारीमल किशोरी लाल जी ने बनवाया है। इस मंदिर की वेदी में मध्यवाली प्रतिमा भगवान महावीर स्वामी को है। इसका प्रतिष्ठा काल माघ सुदी १३ संवत् १८४१ लिखा है। इसके बगल में पार्श्वनाथ स्वामी की दो प्रतिमाएं हैं, जिनका प्रतिष्ठा काल वैशाख सुदी ३ सं० १५४८ लिखा है। इस बेदी में और भी कई प्रतिमाएं हैं। गुणावा
यह सिद्ध क्षेत्र माना जाता है, यहाँ से गौतम स्वामी का निर्वाण हुमा मानते हैं, पर यह भ्रम है। गौतम स्वामी का निर्वाण स्थान विपुलाचल पर्वत है, गुणाबा नहीं। हां, इतनी बात अवश्य है कि गौतम स्वामो नाना देशों में बिहार करते हए गुणाबा पहुंचे थे और यहाँ तपस्या की थी।
यह स्थान नवादा स्टेशन से १-११३ मील की दूरी पर है। यहाँ पर श्रीमान सेठ हकमचन्द जो साहब ने जमीन खरीद कर धर्मशाला एवं भव्य मन्दिर का निर्माण कराया था धर्मशाला के मन्दिर में भगवान कुन्धनाथ स्वामी की ४-११३ फुट ऊंची श्वेतवर्ण की पद्मासन प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा चैत्र शुक्लाष्टमी सं० १९६५ में हुई है । वेदी में चार पाश्र्वनाथ स्वामी की प्रतिमायें हैं, जिनका प्रतिष्ठाकाल सं० १५४८ है। इस वेदी में एक वासुपूज्य स्वामी को प्रतिष्ठा सारंगपुर निवासी दाताप्रसाद भावसिंह भार्या अमरादिने करायी है । वेदी में कुन्थनाथ स्वामी की प्रतिमा के पीछे एक सं० १२६८ की एक और प्रतिमा है। यहाँ गौतम स्वामी के चरण वीर सं० २४५३ के प्रतिष्ठत हैं। बेदी सुन्दर संगमरमर की है, इसका निर्वाण कलकत्ता निवासी श्रीमान सेठ माणिकचन्द्र जी की धर्मपत्नी ने कराया है।
. धर्मशाला के दिगम्बर मग्दिर से थोड़ी ही दूर पर जल मन्दिर है। यह मन्दिर एक ६-७ फीट गहरे तालाब के मध्य में बनाया गया है। मन्दिर तक जाने के लिए २०३ फीट लम्बा पुल है। आजकल इस जल मन्दिर पर दिगम्बर और श्वेताम्बर भाइयों का समान अधिकार है, यहाँ एक दिगम्बर पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा तथा गौतम स्वामी की चरणपादुका है। इस
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