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ऊंची चोटी का नाम "आकाशालोकन" है। यह नीचे से डेढ़ मीस ऊंची होगी। इस शिखर पर एक चरणपादुका बहुत प्राचीन है। चरण चिह्न “१२" हैं। शिखर से नीचे उतरने पर महान शिला को एक दीवाल में १० दिनम्बर जैन प्रतिमाएं खण्डित अवस्था में हैं । इन प्रतिमाओं पर नागरीलिपि में लेख हैं, जो घिस जाने के कारण पढ़ने में नहीं आता है केवल निम्न अक्षर पढ़े जा सकते हैं।
श्रीमत् महाचन्द कलिय सुपुत्र संघ घर मई सह सिद्धम
इस स्थान को पण्डों ने दशावतार गुफा प्रसिद्ध कर रखा है। वृशिला की दूसरी ओर भी दीवाल में १० प्रतिमाएं हैं। इस स्थान में प्राकाशलोक शिखर तीन मीज है। मार्च १९०१ को इंडियन एण्डीक्वेटी में इस तीर्थ के सम्बन्ध में जिला गया है
"आकाशलोजन शिला की चरणपादुका को पुरोहित लोग कहते हैं कि विष्णु की है, निश्चय होता है कि यह जैन तीर्थकर की चरणपादुका है और ऐसा ही मान कर इसकी असल में
"पूर्व काल में यह पहाड़ अवश्य जैनियों का एक प्रसिद्ध तीर्थं रहा होगा, यह बात भली प्रकार स्पष्टतया प्रमाणित है। क्योंकि सिवाय दुर्गादेवी की नवीन मूर्ति के और बौद्ध मूर्ति के एक खण्ड के अन्य सर्व पाषाण की रचना के चिह्न चाहे लग पड़े हुए, चाहे शिलाओं पर अंकित हो वे सब तीरों को ही करते हैं "
बाज इस पवित्र क्षेत्रके पुनरुद्धार और प्रचार की आवश्यकता है। भा० द० जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी को इस क्षेत्र कीओर ध्यान देना चाहिए।
परन्तु देखने से ऐसा पूजा होती थी।"
धावक पहाड़
गया के निकट रफीगंज से ३ मील पूर्वं श्रावक नाम का पहाड़ है। यहाँ एक ही शिला का पर्वत है, २ फर्लांग ऊंचा होगा। यहां वृक्ष नहीं है, किनारे-किनारे शिलाएं हैं। पहाड़ के नीचे जो गांव बसा है, उसका नाम भी श्रावकर है। पर्वत के ऊपर १० गज जाने पर एक गुफा है, जो १०६ गज है। इससे एक जीणं दिगम्बर जैन मन्दिर है, जो इस समय ध्वस्त प्रायः है। यहां पर श्री पार्श्वनाथ स्वामी की मनोज मुर्ति है। इसका बायां पैर खण्डित है। गुफा में अन्य भी खण्डित मूर्तियां है, गुफा के भीतर के पाषाण पद में ६ पद्मासन मूर्तियां हैं, नीचे यक्षिणी की मूर्ति लेटी है । इस पद के नीचे एक लेख प्राचीन लिपि में हैं।
प्रचार पहाड़
गया जिले में औरंगाबाद की सीमा के पूर्व की घोर रफीगंज से दो मोल की दूरी पर प्रचार या पछार पहाड़ है। यहां पर एक गुफा के बाहर वेदी में पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति विराजमान है। इसके आस-पास तीर्थंकरों की अन्य प्रतिमाएं हैं । इस पहाड़ की जैन मूर्तियों के ध्वांसावशेषों को देखने से प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में यह प्रसिद्ध तीर्थ रहा है। सामान्य तीर्थ
धारा की प्रसिद्धि नन्दीश्वरदीप की रचना श्री सम्मेदशिखर की रचना श्री गोम्मटेश्वर की प्रतिमा, मानस्तम्भ, श्री जैन सिद्धान्त भवन और श्री जैन बालाश्राम के कारण है। गया अपने भव्य जैन मन्दिर के कारण, छपरा अपने शिखरबन्द मन्दिर के कारण, भागलपुर अपने भव्य मन्दिर तथा चम्पापुर के निकट होने के कारण, हजारीबाग श्री सम्मेदशिखर के निकट होने के कारण प्रसिद्ध हैं। इसी प्रकार ईसरी, गिरिडीह, कोडरमा, रफीगंज आदि स्थान भी साधारण तीर्थ माने जाते हैं । बिहार शरीफ का छोटा सा पुराना मन्दिर भी प्राचीन है। इस प्रकार बिहार के कोने कोने में जैन तीर्थ हैं। यहां का प्रत्येक वन, पर्वत और नदी तट तीर्थकरों की चरणरज से पवित्र है।
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