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यद्यपि मैं पक्का ईसाई हं पर तो भी मैं कहंगा कि इन साधुओं का सम्मान हर सम्प्रदाय के मनुष्यों को करना चाहिये । उन्होंने संसार के सभी सम्बन्धों को त्याग दिया है और एक मात्र मोक्ष की साधना में लीन हैं।"
सचमुच इन विद्वानों का उत्ता कपन दिगम्बस्व सचिमाजन मुनियों की महिमा का स्वतः द्योतक है। यदि विचारशील पाठक तनिक इस विषय पर गम्भीर विचार करेंगे तो वह भी नग्नता के महत्व और नग्न साधुओं के स्वरूप को मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक जान जायगे । कविवर वृन्दावन जी के शब्द स्वतः उनके हृदय से निकल पड़ेगे :
"चतुर नगन मुनि दरसत,
भगत उमंग उर सरसत । नुति थुति करि मन हरसत,
तरल नयन जल बरसत ।।"
१. JG. XXIII p. 139
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