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जब तीर्थयात्रा करते हुये मथुरा पहुंचे तो उन्होंने वहां पर ५१४ दिगम्बर मुनियों के समाधि सुचक प्राचीन स्तूपों को जीर्णशाण दशा में देखा। उन्होंने उनका उद्धार करा दिया और उनको प्रतिष्ठा धुमतिथिवार को बहुविधि (१) मुनि (२) यार्यिका (३) धावक (४) श्राविका एकत्र करके कराई थी। इन उस्सों से अकबर के राज्य में अनेक दिगंबर गुनिया और उनका निर्वाध बिहार सारे देश में होता था।
है कि
थे
बादशाह औरंगजेब ने दिगम्बर मुनिका सम्मान किया था
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अकबर के बाद मुखानदान में जितने भी शासक हुने उन सबके हो शासनकाल में दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व मिलता है । औरङ्गजेब सदृश कट्टर बादशाह को भी सुनियों कि श्रीरङ्गजेब ने उनका सम्मान किया था। उस समय के किन्हीं मुनि महाराजों का उल्लेख इस प्रकार है ।
तत्कालीन दिगम्बर मुनि
दिगम्बर मुनि श्रीसकलचन्द्रजी सं० १६६७ में विद्यमान थे। उनके एक शिष्य ने 'भक्तामर कथा' की रचना की थीं। [सं०] १६०० का लिखा हुआ एक गुटका दि० जैन पंचायती बड़ा मन्दिर मैनपुरी के शास्त्र में विराजमान है। उसमें भी दिगम्बर मुनि महेन्द्रसागर का उल्लेख उस समय में मिलता है। संवत् १७१२ में अकबराबाद में मुनि श्री वैराग्यसेन ने " कर्म की १४८ प्रकृतियों में विचार" चर्चा ग्रन्थ लिखा था । सं० १७५३ में गुरु देवेन्द्र कीर्ति का परितत्व डूंडारिदेश में मिलता है। यहां पर दिगम्बर मुनियों का प्राचीन मादास था। सं० २०५७ में कुण्डलपुर में मुनि श्री गुणसागर और यश कीर्ति थे। उनके शिष्य ने महाराजा छत्रसाल की विशेष सहायता की थी। कवि साममणि ने श्रीरङ्गजेब के राज्य में 'जितपुराण' की रचना की थी। उससे काष्टा में श्री धर्मसेन, भावसेम, सहस्रकोति गुणकीति यशःकीर्ति जिनचन्द्र थुतकीर्ति आदि दिगम्बर
देवियाकोति
जयाद्भोक्ताथ नाथः प्रभुरिति नगरस्यास्य वरानाम्नः ॥ ६२ ॥ नोवो जगति विजयश्यापि सतावत
साम्बरास्ते यत्तयः । तस्तेभ्यो नमो समयनियतं प्रोल्लसत्यसादादमानं इतिविरहि वर्तते मोक्षमार्ग
१. अनेकान्त भा० १० १३० १४१ चतुविधमहासंघ समाहूयाधीमता । " २. SSII, pt. 11 p, 132. जैन कवियों ने औरङ्गजेब की प्रशंसा ही की है :"सावली को राज पायो कविजन परम बाज
चक्रवतिसम जगमें भयो, फेरत मानि उदधि लो गयो |
जाके राज परम सुख पाय, करी कथा हम जिन गुन नाय || "
२००१४३
नीदा।"
"मुनिगाहेन्द्रसेन गुरु सिंह जुग चरन पसाइ "
"मुनि महेंद्रसेन इहं निशि प्रणामा वासो ।
थानि कपस्थलि नीक भनत भगौती दासो || "
कवि वाल
वीर जिनेन्द्र गीत ० राजमतिमिर
-ज्ञानी हाल
५. "संवत १७१६ वर्षे फाल्गुण सुदि १३ सोमे लिखितं मुनि श्री वैराग्य सागरेसा ।"
६.
बाजारात
विकाराभारत
॥
कुन्दकुन्द मुनिरा जिहाद जातीत भए मुनिवविवाही देवेन्द्रकोति चिरावारी ताही ये
I
वहां विनू गुरुरि ॥
- पद्मपुराण भाषा
सतरासेतियासिये पोस सुकुल तिथिजानि 1... " ७.न्हाववान गुणसागर भस्मी संघ संपूग्यो वशः कोतिर्महामुनिः ॥
७४०
-- दि० पू० २५६