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और देशों के निवासी भी 'धमण' हैं।" यह लिखा ही जा चुका है कि दिगम्बर मुनि 'श्रवण' नाम से भी विख्यात हैं। प्रत: कहना होगा कि रसोदुद्दीन के अनुसार मलावार आदि देशों के निवासी दिगम्बर जैन ही थे, और तब उनमै दिगम्बर मुनियों का होना स्वाभाविक है।
मुगल साम्राज्य में दिगम्बर मुनि उपरान्त सन् १५२६ से १७६१ ई० तक भारत पर मुगल और सूरवंशों के राजाओं ने राज्य किया था। उनके समय में भी दिगम्बर मुनियों का बाहुल्य था। पाटोदी (जयपुर) के वि० सं० १५७५ की प्रशस्ति से प्रगट है कि उस समय श्रीचन्द नामक मुनि विद्यमान थे। लखनऊ चौक के जैन मन्दिर में विराजमान एक प्राचीन गुटका के पत्र १६३ पर दी हुई प्रशस्ति से निर्ग्रन्थाचार्य श्री माणिक्यचन्द्रदेव का अस्तित्व सं० १६११ में प्रमाणित है। 'भावत्रिभंगी' की प्रशस्ति से सं० १६०५ मुनि क्षेमकीति का होना सिद्ध है । सचमुच बादशाह बाबर हुमायं और शेरशाह के समय में दिगम्बर मुनियों का विहार सारे देश में होता था । मालूम होता है कि उन्हीं का प्रभाव मुसलमान दरबेशों पर पड़ा था; जिसके फलस्वरूप वे नग्न रहने लगे थे । मुगल बादशाह शाहजहाँ के समय में वे एक बड़ी संख्या में मौजद थे । शेरशाह के समय में दिगम्बर मुनियों का निर्वाध विहार होता था; यह बात शेरशाह के अफसर मलिक मुहम्मद जायसी के प्रसिद्ध हिन्दी काव्य 'पद्मावत' (२०६०) के निम्नलिखित पद्य से स्पष्ट है
"कोई ब्रह्मचारज पन्थ लागे। कोई सुदिगम्बर प्राछा लागे ।।"
अकबर और दिगम्बर मुनि बादशाह अकबर जलालुद्दीन स्वयं जैनों का परम भक्त था और यदि हम उस समय के ईसाई लेखकों के कथन को मान्यता दें तो कह सकते हैं कि वह जैनधर्म में दीक्षित हो गया था। निस्सन्देह श्वेताम्बराचार्य श्रीहीरविजयसूरि ग्रादि का प्रभाव उस पर विशेष पड़ा था। इस दशा में अकबर दिगम्बर साधनों का विरोधी नहीं हो सकता । बल्कि अबुलफज़ल ने 'प्राईने-इमकबरी' भाग ३ पृष्ट ७ में उनका उल्लेख स्पष्ट शब्दों में किया है और लिखा है कि वे नंगे रहते हैं ।
राट का दिगम्बर संघ वराटनगर में उस समय दिगम्बर मुनियों का संघ विद्यमान था। वहां पर साक्षात् मोक्ष मार्ग की प्रवृति के लिये यथाजात निजलिङ्ग शोभा पा रहा था। यह नगर बड़ा समृद्धशाली था और उस पर अकबर शासन करता था । कवि राजमल्ल ने 'लाटीसंहिता को रचना यहीं के जनमंदिर में की थी। उन्होने अपने 'जम्बूस्वामी चरित' में लिखा है कि भटानियाकोल के निवासी साह टोडर
1. Rashi-uddin from Al-Biruni writes. "The whole country (of Malibar produces the pan... The people are all Samanis and worship idols. Of the cities of the shore the first is Sindabur, the Fakuur, then the contry of Manjarur, then the country of Hili, then the cuntry of Sadarsa, then Jangli then Kulam. The men of all these countries are Samanis."
- -Elliot. Vol. Ip. 68. इलियट सा० ने इन श्रमणों को बौद्ध लिखा है, किन्तु इस समय दक्षिण भारत में बौद्धों का होना असम्भव है। श्रवण शब्द बौद्धभिक्षु के अतिरिक्त दिगम्बर साधुओं के लिये भी व्यवहृत होता है ।
२. Oxford p. 151. ३. ''श्री संघाचार्यसल्फावि शिवण श्री चन्द्रमुगि।"-जमि०, वर्ष २२ मंक ४५ पृष्ठ ६६८
४. "सं० १६११ नेत्र सु० २...." मूल संघ... "भ. श्री विद्यानन्दि तत्पटे श्री बाल्याण कीति तत्स? नर्ग्रन्थाचार्य' 'तपोबललब्मातिशय श्री माणिकचन्द्र देवा.. ....।"
-मि०, वर्षे २२ प्रक४८ पृ. ७४० ५. "०१६०५ वर्षे तस्शिाय सर्वगुणविराजमान मंडलाचा मूनि श्री क्षेमकीर्तिदेवाः।" ६. Bernier pp.314-318
७. पादरी चिन्हे शो (Pinheiro) ने लिखा है कि अकबर जैन धर्मानुयायी है |He (Akbar) follows the sect of the Jainas
सूस०, पृ० १७१-३६८ t, 'वीर" वर्ष ३१०
व "लाटी." प०११:"श्रीमड्डिीरपिण्डपभितमित नभः पाण्डुराखण्डकीया, कृष्टं ब्रह्माण्ड काईनिजभुजयशसा मण्डपाडम्बरोऽस्मिन् ।