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किया जिसका नापने बड़ी बढ़ता और लगन से पालन किया, आपकी इच्छा त्याग की तरफ ज्यादा रहने लगी, कुछ दिन बाद प्राचार्य पायसागर जी के शिष्य मुनिराज जयकीति जी महाराज स्तवनिधि पधारे, जिनके प्रवचन से विरागबत्ति बलवती हो गई
और आपने महाराज श्री के चरणों में दीक्षा की प्रार्थना की, संसार की असारता से आपका मन व्याकुल हो उठा, महाराज श्री जयकोति जी से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये । महाराज जयकीति जी ने कुछ समय पश्चात् रामटेक जिला नागपुर में ऐलक दीक्षा दी और बालगौड़ा से देशभूषण नाम रखा गया ।
अपरिग्रह से प्रभावित हो निम्रन्थ दिगम्बर मनि पद की दीक्षा देने की प्रार्थना आपने गुरुवर्य से की, पूज्य महाराज जी ने सिद्ध क्षेत्र कुन्थलगिरि जी पर मुनि दीक्षा प्रदान की। मनि देश भूषण जी संघ सहित सूरत पधारे, समाज की प्रार्थना पर वहीं पर चतुर्मास किया। महाराज की विद्वता, व्यवहार कुशलता संघ के अनुशासन आदि को देखकर समस्त समाज ने निर्णय किया कि मुनि देशभूषण जी को प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया जाय जिससे समाज को सबल नेतृत्व मिल सके । समाज ने चतुर्विध संघ का नेतृत्व और प्राचार्य पद ग्रहण करने की प्रार्थना की, किन्तु आपने कहा कि पूज्यपाद प्राचार्य पायसागर जी महाराज विराजमान हैं वगैर उनकी प्राज्ञा से यह कैसे सम्भव है, महाराज पायसागर जी ने यह सुनते ही सूरत वालों से कहा कि देशभूषण इस पद के सर्वथा उपयुक्त हैं पापको सूरत में भव्य प्रायोजन के मध्य प्राचार्य पद से विभूषित किया गया। इसके पश्चात् दिल्ली की धर्म परायण जनता ने आचार्य देश भूषण जी को प्राचार्य रत्न की उपाधि से अलंकृत किया और गोम्मटेश्वर मस्ताभिषेक के अवसर पर एकत्रित जैन समाज के चतुर्विध संघ ने उन्हें मुख्य प्राचार्य घोषित किया ।
महाराज धी ने असंख्य लोगों को धर्म का लाभ दिया मद्य मांस का त्याग कराया, मापके प्रवचन से जनजीवन में धर्म प्रेम उमड़ने लगता है आपका उपदेश किसी वर्ग, सम्प्रदाय और मान्यताओं तक सीमित नहीं रहता है। धर्म सयका है आप सब
आपने अनेक स्थानों पर मन्दिरों का निर्माण कराया। तथा अनेक मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया । प्रतिष्ठायें कराई हैं। कोल्हापुर में शिक्षा कालेज, श्री अयोध्या जी में भगवान ऋषभदेव जी का भव्य मन्दिर एवं गुरुकुल, कोथलपूर का श्री जिन मन्दिर और गुरुकुल, हाई स्कूल आएकी मह बोलती तस्वीरें हैं । सम्प्रति भगवान महावीर स्वामी के २५००वें निर्माण महोत्सव, दिल्ली में महावीर स्वामी की भव्य उत्तुंग खडगासन प्रतिमा के विराजमान कार्य को पूरा कराने में प्रयत्नशील हैं।
अनेक विदेशी जिज्ञासू बन्धु महाराज श्री के चरणों में धर्म लाभ लेने पाते रहते हैं, वत नियम ग्रहण करते हैं। प्राचार्य श्री ने अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना की है अनुवाद किया है जिनकी संख्या लगभग पचास से भी अधिक है। प्राचीन अप्राप्य अप्रकाशित ग्रन्थों का प्रकाशन करा कर थी जिनवाणी के प्रचार में दत्तचित्त रहते हैं प्रस्तुत ग्रन्य पापके परिश्रम का ही फल है। वस्तुतः प्राचार्य श्री स्वयं में एक जीवित संस्था हैं नवचेतना के सूत्रधार हैं, जागरण के अग्रदूत हैं । महिंसा अपरिग्रह के समर्थ सन्देशवाहक हैं।
७० वर्ष की प्राय में भी आप हमेशा ध्यान, तप और साहित्य सृजन के कार्य में लीन रहते हैं । इस समय माप दिल्ली जन समाज की प्रार्थना पर देहली में ससंघ विराजमान हैं और भगवान महावीर स्वामी के २५००वें निर्वाण महोत्सव की सफलता के लिए पूर्ण प्रयत्नशील हैं, उसी शृंखला में श्री 'भगवान महावीर स्वामी' से सम्बन्धित कई ग्रंथों की रचना तथा सम्पादन के कार्य में संलग्न है।
आपके सरल स्वभाव से मानव के चित्त को बड़ी शांति मिलती है।
सच बात तो यह है कि ब्रिटिश-राज की नीति के अनुसार किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं था और भारतीय कानून के अनुसार भी प्रत्येक सम्प्रदाय के मनुष्यों को यह अधिकार है कि वह किसी अन्य संप्रदाय या राज्य के हस्तक्षेप बिना अपने वार्मिक रीति-रिवाजों का पालन निर्विघ्न-रूप से करे । दिगम्बर जैन मुनियों का मग्नवेश कोई नई बात नहीं है। प्राचीन काल से जैन धर्म में उसकी मान्यता चली आई है और भारत के मुख्य धर्मों तथा राज्यों ने उसका सम्मान किया है, यह बात पूर्व-पृष्ठों के प्रवलोकन से स्पष्ट है । इस अवस्था में दुनिया की कोई भी सरकार या व्यवस्था इस प्राचीन धार्मिक रिवाज को रोक नहीं सकती। जैन साधुनों का यह अधिकार है कि वह सारे वस्त्रों का त्याग करें और गृहस्थों का यह हक है कि वे इस नियम को अपने साधुनों द्वारा निर्विघ्न पाले जाने के लिये व्यवस्था करें, जिसके बिना मोक्ष सुख मिलना दुर्लभ है।
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