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ब्रह्म स्वर्ग ते सो मर चयो, जटिल' नाम साके सुत भयो । दुर्मत लीन भयौ दन सोई, बंद शास्त्र को वेदक होइ ।।१०।। पूरब संसकार के जोग, धारौं परित्राजक तपशोग । मूढ जनन कर वन्दिन भयो, कुमति कुमार्ग प्रकाशक ठयौ ।।१०१॥ पुरख वत चिरकाल भ्रमेय, आयु क्षीण सो मृत्यु करेय । कायकलेश तनौ फल लयों, प्रथम सुधर्म स्वर्ग सुर भयौ ।।१०।। सागर दोय ग्रायु परवान, अष्ट ऋद्धि सुख संपति जान । देखो भवि! निष्फल नहि जाहि. कुबुध कुतपसा जगके माहि ।।१०३|| वहीं अयोध्या नग्र विशाल, गीहै मन्दिर पांति विशाल । भारद्वाज विभ तिहि थान, पुष्पदन्त नस निया बखान ।।१०४।। सो सुर चयो तहा ते पाय, पुष्पमित्र' सुन तिनकै थाय । भ्यासी भया कुशास्त्र अपार, दुर्मत दुराचार अबिचार ।।१०।। मिथ्यापाक बहुरि सो जान, मिथ्या मत मोहित प्रज्ञान । कान्यो पूरवा तिन नेप, और नरन दीनी उपदेश ।।१०६।। पंचवीस दुठ तत्व अभ्यास, दुरबुद्धी मानों पुनि जास । मन्द कषाय बांध सुर अाव, छोड़ देह पायो शुभ ठाव ।।१०७।। मौधर्म प्रथम स्वर्ग में गयौ. सागर एक पाय सूख लयौ । कुता जोग यह लक्ष्मी पाइ, देखो तप निष्फल नहि जाय ।।१०।। पही प्रारज खण्ड मंझार, स्वस्तिक पूर सोहै सभ सार । अग्निभूति ब्राह्मण ता वर्म, नारि गौनमो ता घर लस ॥१६॥ स्वर्ग प्रायु चय के सो देव, कर्म विपाकतनी फल एव । अग्निसिधु'शुन तिनके सार, मन एकात शास्त्र वेलार ॥११०।। पुरववत' राब विधि आदरी, परित्राजक दीक्षा उर धरी। कुता यग सब काल गमाय, आयुहीन तिन छोड़ो काय ।१११।। तर अजान कलेश प्रभाव, भयो देव पायो त्रुभ ठाव । सनत्कुमार" स्वर्ग में मोय, वारिधि सप्त मायु तह जोय ।। ११२।।
आरम्भ किया। देखो, यह जगत का स्वामी बज शरीर न जाने कब तक इस प्रकार खड़ा रहेगा। हमें नो इसके साथ रहने में प्राण नष्ट होने का भय मालूम होता है। क्या हम इनकी बराबरी कर प्राण त्याग करेंगे? ऐसा वार्तालाप कर वे भगवान ऋषभदेव को नमस्कार कर दुसरी ओर चल दिये। उन्हें घर लौटने में भी राजा भरत का भय था, इसलिए उन्होंने पापोदय से फल खाना प्रारम्भ कर दिया। उन राजाओं की देखा-देखो वह मरीचि भी वैसा ही करने लगा। किन्तु उन्हें, इरा प्रकार के नीच कम करते हुए देखकर उस वनके देवने कहा-अरे धतों! तुम सब मेरी बातों को सुनो। इस पवित्र मूनि-वेष में जा लोग निन्द्य कम करते हैं, वे पाप के उदय से नरक रूपी समुद्र में जा गिरते हैं। वस्तुतः गार्हस्थ अवस्या के किये हुए पाप जिन-लिंग अर्थात् मुनि अवस्था में छूट जाते हैं। पर यदि मुनि वेष में पाप किया जाय तो उस पाप से छुटकारा पा जाना अत्यन्त कठिन ही नहीं, वरन असम्भव है। अतएव तुम लोग इस वेप का परित्याग कर कोई दूसरा वेष ग्रहण करो, अन्यथा मुझे वाध्य हो तुम्हें दण्ड देना पड़ेगा 1 देव की ऐसी फटकार सुनकर उन मनि वेषधारी पाखण्डियों को बड़ा भय हआ। वे मुनि वेप को त्याग कर जटा-जट इत्यादि वप धारण कर लिये । भरत पुत्र मरीचिने भी तीव्र मिथ्यात्व कर्म के उदय से मुनिवेष का परित्याग कर सन्यासी का वेष धारण कर लिया। उसकी तीक्ष्ण बुद्धि अब परिव्राजक मतों के शास्त्रों की रचना करने में समर्थ हुई। ठीक ही है, जैसी होनी होती है, वह होकर रहती है। उसके लिए किसी प्रकार का प्रयत्न करना व्यर्थ सिद्ध हुआ करता है।
तीनों जगत के पुज्य श्री ऋषभदेव पच्ची पर बिहार करने लगे। वे उसी बन में एक हजार वर्ग तक मौन साधकर सिंह के समान निश्चल रहें। उस तीर्थकर राजा ने अपने ध्यान रूपी खड़ग से, संसार हितकारी केवल ज्ञान रूपी राज्य को स्वीकार किया अर्थात केबल ज्ञानी हो गये। ठीक उसी समय यक्षादिगणों ने बारह कोठों वाले सभा-मण्डप की रचना की, जिसमें संसार के सभी जीव आ जाय । साथ ही इन्द्रादिक देवा ने भी अपनी विभूति और देवांगनाओं के साथ पाकर अष्ट द्रव्य से भक्ति पूर्वक प्रभु की पूजा की।
ब्राह्मण पुत्र १न्त्रग से आकर मैं अपोच्या के कपिल ब्राह्मण की काली नाम की नयी से जटिल नाम का पुष हुजा । बड़ा होकर परिबाजक सांस्यमाधु हो गया । संसारी वस्तुओं को त्यागने का फैमा सुन्दर फल प्रात होता है। मृत्यु होने पर सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ।
२ भोग भागने के बाद इसी भारतवर्ष के स्थणागार नाम के नगर में भारद्वाज नामक बाह्यगा की स्त्री पुष्पदन्ता के इप्पमित्र नामका पुत्र हुआ 1 वहां भी परित्राजन का साध होकर भांगण मन का प्रचार किया ।
३ संसार त्यागने के कारण फिर सौधर्म स्वर्ग प्राप्त हुआ।
४ वहाँ से आकर त्रेतिक नाम के नगर में अस्तित ब्राह्मण की गौतमी नाम की स्त्री से अग्निसिंधु नाम का गुत्र हुआ। यहां भी परिब्राजा धर्म का सन्यासी होकर प्रकृति आदि २५ तत्वों का प्रचार किया ।
संसार त्यागने के कारण फिर गर कर सनतकुमार नाम के तीसरे स्वर्ग में देव हुआ।
संसारी मोह-ममता के त्याग का देखिये कितना सुन्दर फल मिलता है! सम्यग्दर्शन न होने पर भी संसारी मुत्रों का तो कहना ही क्या स्वनों तक के भोग आप से आप प्राप्त हो जाते हैं तो सम्यग्दर्शन प्राप्त हो जाने पर मोक्ष के अविनाशक सुखों में क्या सन्देह हो सकता है?