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रामों का अधिकार हो गया। इन राजाओं के उद्योग से जैन धर्म फिर एक बार चमक उठा।
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आन्ध्रवंशी राजाओं में हाल, पुलुमाथि यादि जैन धर्म प्रेमी कहे गये हैं । इन्होंने दिगम्बर जैन मुनियों को बिहार और धर्म प्रचार करने की सुविधा प्रदान की प्रतीत होती है। उज्जैन के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य भी इसीवंश से सम्बन्धित बताये जाते हैं वह क्षेत्र थे परन्तु उपरान्त एक दिगम्बर जैनाचार्य के उपदेश से जैन हो गये थे।
ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दि में एक भारतीय राजा का सम्बन्ध रोम के बादशाह यॉगस्टर से था। उन्होंने उस जाबशाह के लिये भेंट भेजी थी जो लोग उस भेंट को ले गये थे. उनके साथ भृगुकच्छ (भय) से एक श्रमणाचार्य (दिगम्बर जैनाचार्य) भी साथ हो लिये थे। वह यूनान पहुंचे थे और वहां उनका सम्मान हुआ था। यासिर सल्लेखना व्रत को धारण करके उन्होंने घन्स (Athens) में प्राणविसर्जन किये थे वहाँ उनकी एक निषधिका बना दी गई थी। अव भत्ता कहिये, जब उस समय दिगम्बर मनि विदेशों तक में जाकर धर्मप्रचार करने में समर्थ थे, तो वे भारत में क्यों न बिहार और धर्म प्रचार करने में सफल होते जैन साहित्य बताता है कि गंगदेव, सुधर्म नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु भुवसेन आदि दिगम्बर जैनाचायों के नेतृत्व में तत्कालीन जैनधर्म सजीव हो रहा था।
ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दि में भारत में अपोलो और दमस नामक दो यूनानी तत्ववेत्ता आये थे। उनका तत्कालीन दिगम्बर सुनियों के साथ शास्त्रार्थं हुआ था। सारांशतः उस समय भी दिगम्बर मुनि इतने महत्वशाली ये कि वे विदेशियों का भी ध्यान आकृष्ट करने को समर्थ थे।
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पवन-अप प्रादि राजागण तथा विगम्बर मुनि !
"About the second century B. C when the Greeks had occupied a fair portion of western India, Jainism appears to have made its way amongst them and the founder of the sect appears also to have been held in high esteem by the Indo-Greeks, as is apparent from an account given in the Milinda Panho"-HG. P. 78.
मौव्यों के उपरान्त भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त, पञ्जाब, मालवा पादि प्रदेशों पर यूनानी आदि विदेशियों का
1. JBORS. I. 76-118. and CHE, I P. 532
2. Allahabad university Studies, pt. II. 113-147
3. In the same year (25 B. C.) went an Indian embassy with gifts to Augustus, from a King called Purus by some and Pandian by others They were accompanied by the man who burnt himself at Athens. He with a smile leapt upon the pyre naked On his tomb was this inscription, 'Zermanochegas, to the custom of his country, lies here.' Zermanochegas seems to be the Greek rendering of Sramanacharya or Jaina Guru and the self-immolation, a variety of Sallekhna."--IHQ. Vot. II. 293
4. Apollonius of Tyana travelled with Damus. Born about 4 B. C., he came to explore the wonders of India.......He was a Pythogorian philosopher and met larchas at Taxilla and disputed with Indian Gymnosophists. ( Niganthas)"
QJMS, XVIII, pp. 305-326
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