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आपके संव में दिग० मनियों की संख्या अधिक थी और आपके धर्मोपदेश के द्वारा धर्म प्रभावना विशेष हुई थो!
इनकी उपाधियां 'त्रिविधविधेश्वरवैयाकरणभास्कर-महा-मंडलाचार्यतर्क वागीश्वर' थी। इनके बिहार द्वारा खूब प्रभावना हुई।
उपरान्त परमार राजाओं के समय में दिगम्बर मुनि मालवा के परमार राजाओं में विन्ध्यवर्मा का नाम भी उल्लेखनीय है । इस राजा के राजकाल में प्रसिद्ध जैन कवि माशाधर ने ग्रन्थ रचना की थी और उस समय कई दिगम्बर मुनि भी राजसम्मान पाये हुए थे। इनमें मुनि उदयमेन और मनि मदनकीर्ति उल्लेखनीय हैं। मुनि मदनकीर्ति ही विन्ध्यवर्मा के पुत्र अर्जुनदेव के राज गुरु मदनोपाध्याय अनुमान किये गये है। इन्हें और मनि विशालकीत्ति, मुनि विनयचन्द्र प्रादि को कविवर पाशाधर ने जैन सिद्धान्त और साहित्य ज्ञान में निपुण बनाया था। नालन्दा उस समय जैन धर्म का केन्द्र था।
श्वेताम्वर ग्रन्थ "चतुर्विशति प्रबन्ध" में लिखा है कि उज्जनी में विशाल कीति नामक दिगम्बराचार्य के शिष्य मदन कीति नामक दिगम्बर साधु थे। उन्होंने वादियों को पराजित करके 'महाप्रामाणिक पदवी पाई और कर्णाटक देश में जा कर विजयपुर नरेश कुन्ति भोज के दरबार में प्रादर पाया था और अनेक विद्वानों को पराजित किया था; किन्तु अन्त में वह मुनि पद से भ्रष्ट हो गए थे।
गुजरात के शासक और दिगम्बर मनि मालवा के अनुरूप गुजरात भी दिगम्बर जैन मुनियों का केन्द्र था । अंकलेश्वर में भूतवलि और पुष्पदन्ताचार्य ने दिगम्बर नागम ग्रन्थों की रचना की थी। गिरि नगर के निकट की गुफाओं में दिगम्बर मुनियों का संघ प्राचीन काल से रहता था। भगुकच्छ भी दिगम्बर जैनों का केन्द्र था।
गजरात में चालूक्य राष्ट्रकुट आदि राजामों के समय में दिगम्बर जैन धर्म उन्नतशोल था । सोलंकियों को राजधानी अणहिलपूरपदन में अनेक दिगम्बर मुनि थ । श्रीचन्द्र मुनि ने वहीं ग्रन्थ रचना की थी। योगचन्द्र मुनि' और मूनि कनकामर भी शायद गुजरात में हुए थे। ईडर के दिगम्बर साधू प्रसिद्ध थे।
सोलकी सिद्धराज ने एक वाद सभा कराई थी। जिसमें भाग लेने के लिए कर्णाटक देश से कुमुदचन्द्र नामक एक दिगम्बर जैनाचार्य आये थे। दिगम्बराचार्य नग्न ही गाल पहुंचे थे। शिद्ध उनका बड़ा आदर किया था। देवसरि नामक श्वेताम्बराचार्य से उनका वाद हुप्रा था | इस उल्लेख से स्पष्ट है कि उस समय भी दिगम्बर जैनों का गुजरात में इतना महत्व था कि शासक राजकुल का भी ध्यान उनकी ओर आकृष्ट हुआ था।
दिगम्बराचार्य ज्ञानभूषण गुर्जर, सौराष्ट्र प्रादि देशों में जिन धर्म का प्रचार श्री दिगम्बर भट्टारक ज्ञानभूषण जी द्वारा हुआ था। अहीर देश में उन्होंने ऐलक पद धारण किया था और वाग्वर देशों में महाव्रतों को उन्होंने अंगीकार किया था। बिहार करते हुये वह कर्णाटक. तौलव, तिलंग, द्राविड़, महाराष्ट्र सौराष्ट्र, रायदेश, भेदपाद, मालव, मेवात, कुरुजांगल, तुरुव, विराटदेश, नमियाड़ देश, टग. राट, नाग, चोल प्रादि देशों में विचरे थे। तौलव देश के महावादीश्वर विद्वज्जनों और चक्रवतियों के मध्य उन्होंने प्रतिष्ठा पाई थी तरख देश में षट्दर्शन के ज्ञाताओं का गर्व उन्होंने नष्ट किया था । नमियाड़ देश में जिन धर्म प्रचार के लिए नौ हजार उपदेशकों को उन्होंने नियुक्त किया था । दिल्ली पट्ट के वह सिहासनाधीश थे। श्रीदेवराय राज, मुदिपालराय, रामनाथ राय, बोमरसराय, कलपराय, पाण्डराय आदि राजाओं ने उनके चरणों की बन्दना की थी।
१. द्विज०, वर्ष १४ अक प०१७-२४ । २. पूर्व ३. भाप्रारा० भाग १ पृ० १५७ व सागर०, भूमिका पृ०६ ४. जंहि०, भा ११ पृ. ४८५ ५. बीर वर्ष १ पृ० ६३७ ६. वीर, वर्ष १ पृ० ६३५ ७. विको०, भा० ५ पृ. १५५ ८.सिभा०, भाग १ किरण ४५-४६