Book Title: Bhagavana  Mahavira aur unka Tattvadarshan
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 816
________________ गुरु वीरसेन और जिनसेन ने जिन जयधवल, विजयधवल, अतिधवल और महाधवल नामक ग्रन्थों की रचना बनवासी में रहकर प्रारम्भिक कदम्ब राजारों के समय में की थी, उन चारों प्रत्यों की प्रतियां हाल ही में उपलब्ध हुई हैं।" प्रो० शेषगिरि राउ इन प्रारम्भिक कदम्वों को भी जैनधर्म भक्त प्रकट करते हैं। उनके राज्य में दिगम्बर जैन मुनियों को धर्म प्रचार करने की सुविधायें प्राप्त थीं । इस प्रकार कदम्ब वंशी राजाओं द्वारा दिगम्बर मुनियों का समुचित सम्मान किया गया था। पल्लबकाल में दिगम्बर मुनि एक समय पल्लव वंश के राजा भी जैनधर्म के रक्षक थे। सातवीं शताब्दि में जब ह्वानसांग इस देश में पहुँचा तो उसने देखा कि यहां दिगम्बर जैन साधुआं ( निग्रन्थों की संख्या अधिक है पल्लव वंश के शिवरकंदवर्मा नामक राज्य के गुरु दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्द थे। उपरान्त इस बंश का प्रसिद्ध राजा महेन्द्रसम्मन् पहले जन था धीर दिगम्बर साधनों की विनय करता था। चोल देश में दिगम्बर मुनि चोल देश में भी उस चीनी यात्री ने दिगंवर धर्म प्रचलित पाया था । मलकट । पाण्ड्यदेश ) में भी उसने नंगे जैनियों को बहुसंख्या में पाया था । सातवीं शताब्दि के मध्यभाग में पाण्ड्यदेश का राजा कुण या मुन्दर पाण्ड्य दिगम्बर मुनियों का भक्त था। उसके गुरु दिगम्बर वार्य श्री अमलकाति थे और उसका विवाह एक चाल राजकुमारी के साथ हुमा था, जो शैव थी। उसी के संसगं समुन्दर पाण्ड्य भी शैव हो गया था । वशवीं शतक प्राय: सब राजा दिगा जैनधर्म के प्राश्रयदाता थे सच बात तो यह है कि दक्षिण भारत में दिगम्बर जैनधर्म को मान्यता ईस्वी दसवीं शताब्दि तक खूब रही थी। दिगम्बर मुनिगण सर्वत्र विहार करके धर्म का उद्योत करते थे। उसी का परिणाम है कि दक्षिण भारत में आज भी दिगम्बर मुनियों का सद्भाव है। मि० राइस इस विषय में लिखते हैं कि-- "For more than a thousand years after the begining of the Cliristian cra, Jainism was the religion professed by most of the rulers of the Kanarese people. The Ganga Kings of Talkad, the Rasthitra Kuta Kalachurya Kings of Minyaklct and the early Hoysalas were all Jains. The Brahmapical Kadainha and caily Chalukya Kings were tolerant of Jainism The Pandya Kings of Madura were Jainas and Jainism was dominant in Gujerat and Kathiawar." भावार्थ-स्विी सन के प्रारम्भ होने से एक हजार से ज्यादा वर्षों तक कन्नट देश के अधिकांश राजानों का मत जैनधर्म था। सलवांड के गंग राजागण, मान्यम्बट के राष्ट्रकट और कलाचयं शाराक और प्रारंभिक होयसल न् । सब हो जनी थे। ब्राह्मण मत को मानने वाले जो कादंव राजा थे उन्होंने और प्रारमा के चालस्यों ने जैन धर्म के प्रति उदारता का परिचय दिया था। मदुरा के पाण्ड्यराजा जैन हः थे और गुजरात तथा काठियावाड़ में भी जैन धर्म प्रधान था। - - --- - १. SSIJ., pt. ll p.69-72 २. P.S. Hist. Intro., p.XV ३. EHI. p. 495 ४. हुमा०, पृ० ५७० ५. हुश्रा पृ० ५७४-."The nude Jainas were present in multitudes'"-LHI P. 473 ६. ADJBp. 46 ७. EHI p. 475 ८. IKL., p. 16 ७१०

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