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राजा भोज और दिगम्बर मुनि मुञ्ज के समान राजा भोज के दरबार में भी जैनों को विशेष सम्मान प्राप्त था। भोज स्वयं जव था, परन्तु वह जनों और हिन्दुओं के शास्त्रार्थ का बड़ा अनुरागी था।' श्री प्रभाचन्द्राचार्य का उसने बड़ा आदर किया था। दिगम्बर जैनाचार्य श्री शान्तिसेन ने भोज की सभा में सैकड़ों विद्वानों से वाद करके उन्हें परास्त किया था।
एक कवि कालीदास राजा भोज के दरबार में भी थे। कहते हैं कि उनको स्पर्द्धा दिगम्बराचार्य श्री मानलंग जी से थी। उन्हीं के उकसाने पर राजा भोज ने मानतुगाचार्य को अड़तालीस कोठों के भीतर बन्द कर दिया था, किन्तु श्री भक्तामर स्तोत्र' की रचना करते हये बह प्राचार्य अपने योगबल से बन्धनमुक्त हो गए थे। इस घटना से प्रभावित होकर कहते हैं, राजा भोज जैनधर्म में दीक्षित हो गये थे; किन्तु इस घटना का समर्थन किसी अन्य श्रोत से नहीं होता!
श्री ब्रह्मदेव के अनुसार 'द्रव्यसंग्रह' के कर्ता श्री नेमिचन्द्राचार्य भी राजा भोजदेव के दरबार में थ। श्री नयनन्दि नामक दिगम्बर जैनाचार्य ने अपना "सुदर्शन चरित" राजा भोज के राजकाल में समाप्त किया था।
उज्जैनी का दिगम्बर संघ भोज ने अपनी राजधानी उज्जैनी में स्थापित की थी। उस समय भी उज्जैनी अपने "दि. जैन संघ" के लिए प्रसिद्ध थी। उस समय तक उस संघ में निम्न प्राचार्य हए थे".-.
अनन्तकोति धर्मनन्दि विद्यानन्दि रामचन्द्र रामकीति अभयचन्द्र नरचन्द्र नागचन्द्र हरिनन्दि हरिचन्द्र महीचन्द्र माघचन्द्र लक्ष्मीचन्द्र गुणकीर्ति गुणचन्द्र लोकचन्द्र श्रुतकीति
" १०२२ , भावचन्द्र
" १०३७ , महीचन्द्र
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१. 'मान.ED, भाग १ पृ० ११८-१२१ । २. भक्तामरकथा-प्र०, पृ० २३६ । ३. द्ररां, पृष्ट १ वृत्ति ४. मप्राजस्मा थुमिका १० २० ५. जहि, भा० ६ अंक ५-८ पृ० ३०-३१ ६. ईहर में प्राप्त पट्टावली में लिखा है कि “इ हाने दश वर्ष विहार किया था और यह स्थिर ती थे।"-द्विजे. बर्ष १४ अंक १० पृ० १५-२४.