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उपासना करते हैं। अधिक संख्या निर्गन्थ लोगों (दिगम्बर मुनियों) की है।"
समतट (पूर्वी बंगाल) में भी उसने अनेक दिगंबर साध पाये थे। वह लिखता है, "दिगंबर साधु, जिनको निग्रन्थ कहते हैं, बड़ो संख्या में पाये जाते हैं।"
ताम्रलिपि में वह विरोधी और बौद्ध दोनों का निवास बतलाता है । कर्णसुवर्ण के सम्बन्ध में भी यही बात कहता है।
कलिंग में इस समय दिगंबर जैन धर्म, प्रधान पद ग्रहण किए हुए था। हुएनसांग कहता है कि वहां 'सबसे अधिक संख्या निम्रन्थ लोगों की है। इस समय कलिंग में सेनवंश के राजा राज्य कर रहे थे, जिनका जैनधर्म से सम्बन्ध होना बहत कुछ संभव है।
दक्षिण कौशल में वह विधर्मी पौर बौद्ध दोनों को बताता है। आन्ध्र में भी विरोधियों का अस्तित्व वह प्रगट करता है।
बोल देश में वह बहुत से निर्ग्रन्थ लोग बताता है। द्रविड़ के सम्बन्ध में वह कहता है कि "कोई अस्सी देव मन्दिर और असंख्य विरोधी हैं, जिनको निग्रंथ कहते हैं।"
मासकट (मलयदेश) में वह बताता है कि "कई सौ देव-मन्दिर पीर असंख्य विरोधी हैं, जिनमें अधिकतर निग्रन्थ
लोग हैं।
इस प्रकार हुएनसांग के भ्रमण-वृत्तान्त में उस समय प्रायः सारे भारतवर्ष में दिगंबर जैन मुनि निर्वाध विहार और धर्मप्रचार करते हुए मिलते हैं।
(१६) मध्यकालीन हिन्दू राज्य में दिगम्बर मुनि "श्री धाराधिप भोजराज मुकूट प्रोताश्मरश्मिच्छटाच्छाया कुङ्कम-प-लिप्त-चरणाम्भोजात-लक्ष्मीधवः । न्यायाब्जाकरमण्डने दिनमणिशब्दान्जरोदोमणिस्थयात्पण्डित-पुण्डरीक-तरणि श्रीमान्प्रभाचन्द्रमाः ।।"
--चन्द्रगिरि शिलालेख।
राजपूत और दिगम्बर मुनि वर्ष के उपरांत उत्तर भारत में कोई एक सम्राट् न रहा; बल्कि अनेक छोटे-छोटे राज्यों में यह देश विभक्त हो गया। ना में अधिकांश राजपुतों के अधिकार में थे और इनमें दिगम्बर मुनि निर्वाध विहार कर जनकल्याण करते थे। राजपतों में अधिकांश जैसे चौहान, पड़िहार आदि एक समय जैन धर्म-भक्त थे और उनके कुल देवता, चक्रवरी, अम्बा आदि
१. हुआ. पृ० ५२६ २. हुआ० पृ० ५३३ ३. हुया पृ० ५२५-५३७ ४. हुआ०, पृ५४५ ५, वीर वर्ष ४१० ३२८-३३२ ६. हुआ०, पृ. ५४६-५५७ ७. हुआ०, १० ५७० ८. हुना० पृ० ५७२ ६. हुआ पृ० ५७४
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