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अधिकार हो गया था। इन विदेशी लोगों में भी जैन मुनियों ने अपने धर्म का प्रचार कर दिया था और उनमें से कई बादशाह जैन धर्म में दीक्षित हो गये थे।
भारतीय यवनों (Greck) में मनेन्द्र (Menander) नामक राजा प्रसिद्ध था। उसकी राजधानी पंजाब प्रान्त का प्रसिद्ध नगर साकल' (स्यालकोट) था। बौद्धग्रन्थ 'मिलिन्दपण्ह' से विदित है कि उस नगर में प्रत्येक धर्म के गुरु पहुंचकर धर्मोपदेश देते थे' । मालूम होता है कि दिगम्बर जैन मुनियों को वहाँ विशेष आदर प्राप्त था; क्योंकि मिलिन्दपण्ह' में कहा गया है कि पांच सौ यूनानियों ने राजा मनेन्द्र से भ० महावीर के "निर्ग्रन्थ' धर्म द्वारा मनस्तुष्टि करने का आग्रह किया था और मनेन्द्र ने उनका यह अाग्रह स्वीकार किया था। अत: वह जैन धर्म में दीक्षित हो गया था और उसके राज्य में अहिंसा धर्म की प्रधानता हो गई थी।
यवनों (Indo Greek) को हराकर शकों में फिर उत्तर-पश्चिम भारत पर अधिकार जमाया था। उन्होंने 'छत्रप'प्रान्तीय शासक नियुक्त करके शासन किया था। इनमें राजा अजेस (Ages I) के समय में तक्षशिला में जैन धर्म उन्नति पर था । उस समय के बने हुये जैन ऋषियों के स्मारक रूप स्तूप आज भी तक्षशिला में भग्नावशेष हैं।
शक राजा कनिष्क, हुविष्क और वासुदेव के राजकाल में भी जैन धर्म उन्नत दशा में रहा था। मथुरा उस समय प्रधान जैन केन्द्र था। अनेक निर्ग्रन्थ साधु वहाँ विचरते थे। उन नग्न साधुओं की पूजा राजपुत्र और राजकन्यायें तथा साधारण जनसमुदाय किया करते थे।
छत्रप नहपान भी जैन धर्म प्रेमी प्रतीत होता है। उसका राज्य गुजरात से मालवा तक विस्तृत था। जैन साहित्य में, उनका उल्लेख नरवाहन और नहबाण रूप में हुआ मिलता है। नहपान ही संभवतः भूतबलि नामक दिगम्बर जैनाचार्य हुये थे जिन्होंने "पट्खण्डागम शास्त्र'' की रचना की थी।
छत्रप नहपान के अतिरिक्त छत्रप रुद्र दमन का पुत्र रुद्र सिंह का भी जैनधर्म भक्त होना संभव है। जूनागढ़ की 'अपरकोट' की गुफानों में इसका एक लेख है, जिसका सम्बन्ध जेन-धर्म से होना अनुमान किया जाता है । ये गुफायें जैन मुनियों के उपयोग में आती थीं।
इन उल्लेखों से यह स्पष्ट है कि उपरोक्त विदेशी लोगों में धर्म प्रचार करने के लिए दिगम्बर मुनि पहुंचे थे और उन्होंने उन लोगों के निकट सम्मान पाया था।
1. They resund with cries of welcome to the teachers of every creed and the city is the resort of the leading men of each of the differing sects."
-QKM. P.3 २.QKM. p.8 ३. वीर, वर्ष २ पृ. ४४६-४४६. ४. AGT., P.P, 76-80
%. "Another locality in which the Jainas seem to have been formly established from the middle of the 2nd Century B.C. onwards was Mathura in the old kingdom of Curasena."
-CHI, I, p. 167 and see JOAM, ६. सरस्वती, भा० २६ खण्ड २ पृ० ७४८-७४६ ७. 1A,XX, 163 fr