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जिन मुख्य ज्ञान मरजाद नाहि, थिर रूप पिंड है जाति मांहि । तिनको प्रकार इक देश होई, सो कही एक दृष्टान्त सोई॥ इक सोममयी पुनरा बनाय, नख शिख सु चतुर संस्थान पाय । तन निराभरण पुरषाप्रकार, सबही विधि सुन्दर रचि अपार ।। पून माटीसौं इमि लेप सोय, जैसे तन ऊपर त्वचा होय । बह अंग न खाली रहइ सार, उपचार कल्पना यह प्रकार ॥ सो भाग मांहि लीज तपाव, गल जाय मोम सांची रहाय । अब ता भीतर की विचार कह रह्यो तहां दुध जजन हार।। है मूस पोलको सुन प्रकाश, नभ रह्यौ जु पुरुषाकार लास । सो जानी यह अम्वर उन्हार, तहं ब्रह्मरूप परगट विचार ।।५६६।। पर यह अकाश जड़ शून्यरूप, वह पूरण है चेतन चिप । यह वहमें इतनों फेर जान, आकृति में कछु अन्तरन भान ||५७०।। इहि विधि सिज्ञातम को सरूप, सो निराकार साकार रूप । दृष्टान्त गहै निज हिये धार, भविजन मनको संशय निवार ||५७१||
गीतिका छन्द श्री वीरनाथ जिनेश भाषौ, प्रगट गौतम ने कह्यो । जीव तन्त्र बखान बहुविधि, भव्य जन मन सरदह्यौ ।। वीर्य दरशन ज्ञानकी, यह फेर ऋम शिव-पथ गहै । साधु सु चरण कर्म खय कर, शाश्वत पदको लहै ।।५७२।।
दोहा सर नर पद वंदन सदा, ध्यान धरत जोगेश । तीन लोक प्रभता लिये, प्रनमी बीर जिनेश ॥५७३||
बाणीसे सात तत्वोंका उपदेश सुनाया। ये ही पूर्वोक्त सात तत्व मोक्ष ज्ञान के कारण हैं, दर्शन ज्ञानके बीज रूप हैं और भव्यजीवों के परम उपादेय हैं।
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