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बौद्ध नैयायिक कमलशील ने भी जैनों का 'अहीक' नाम से उल्लेख किया है (ग्रहीकादयश्चोदयन्ति; स्याद्वादपरीक्षा प लवसंग्रह' (प.४५६ ) वाचस्पति भिधानकोष में भी 'अह्रीक' को दिगम्बर मुनि कहा है : "अह्नीक' क्षपणके तस्य दिगम्बरस्वेन लज्जाहीनत्वात् तथात्वम् ।" 'हेतुविन्दु तर्क टोका' में भी जैन मुनि के धर्म का उल्लेख 'क्षपणक' और 'अह्रीक नाम से कयाहै। लथा श्वेताम्बराचार्य श्री बादिदेवसूरि ने भी अपने 'स्यावाद-रत्नाकर' ग्रथ' में दिगम्बर जेनों का उल्लेख प्रतीक माम से किया है। ( स्याद्वाद-रत्नाकर पृ० २३०)।" ८. आर्य-दिगम्बर मुनि । दिगम्बराचार्य शिवार्य अपने दिगम्बर गुरुमों का उल्लेख इसी नाम से करते हैं।
"अज्ज जिणणंदिगणि, सव्वगुत्तगणि प्रज्जमित्तणंदीण । प्रवर्गामय पादमले सम्म सूतं च अत्थं च ।। पुवायरिय णिवद्धा उपजीविता इमा ससत्तीए ।
पाराधण सिवज्जेण पाणिदलभोजिणा रहदा ।।" यह सब आर्य ( साधु ) पाणिपात्रभोजी दिगम्बर थे।
६. ऋषी-दिगम्बर साधु का एक भेद है (यह शब्द विशेषतया ऋद्धिधारी साधु के लिये व्यवहृत होता है)। श्री कुन्दकुन्दाचार्य इसका स्वरूप इस प्रकार निर्दिष्ट करते हैं।
'णय, राय, दोष, मोहो, कोहो, लोहो र जस्स पायत्ता ।
पंच महन्वयधारा प्रायदणं महरिसी भणियं ॥६॥ अर्थात-मद, राग, दोष, मोह, क्रोध, लोभ, माया आदि से रहित जो पंचमहाव्रतधारी है, वह महा ऋषि है।
१०. गणी-मुनियों के गण में रहने के कारण दिगम्बर मुनि इस नाम से प्रसिद्ध होते हैं । 'मूलाचार' में इसका उल्लेख निम्न प्रकार हुआ है:
"विस्समिदो तहिवसं मोमंसित्ता णिवेदयदि गणिणो।" ११. गरु-शिष्यगण-मुनि श्रावकादि के लिये धर्मगुरु होने के कारण दिगम्बर मुनि इस नाम से भी अभिहित हैं। उल्लेख यूं मिलता है :
___"एवं आपुच्छित्ता सगवर गूरूणा विसज्जियो संतो।"५ १२. जिनलिंगी-जिनेन्द्र भगवान द्वारा उपदिष्ट नग्न भेष का पालन करने के कारण दिगम्बर मनि इस नाम से भी प्रसिद्ध हैं।
१३. तपस्वी -विशेषतर तप में लीन होने के कारण दिगम्बर मुनि तपस्वो कहलाते हैं । 'रत्नकरन्ड श्रावकाचार' में इसकी व्याख्या निम्न प्रकार की गई है :
"विषयाशावशातीतो निरारम्भोऽपरिग्रहः ।
ज्ञान ध्यान तपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते ।। १०॥" १४. दिगम्बर-दिशाय उनके वस्त्र हैं इसलिये जैन मुनि दिगम्बर हैं। मुनि कनकामर अपने को जैन मुनि हमा 'दिगम्बर' शब्द से ही प्रकट करते हैं :- ---
१. पुरातत्व, वर्ष ५ अंक ४ पृ० २६६-२६७ २. जहि भा० १२ पृ० ३६० ३. अष्ट० पृ० ११४ ४. मूला, पृ० ७५ ५. मूला पृ० ६७ ६. बृजेश पृ०४ ७. रश्रा, पृ. 4
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