Book Title: Bhagavana  Mahavira aur unka Tattvadarshan
Author(s): Deshbhushan Aacharya
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 789
________________ -भारने के लिए बधक है। इन उल्लेखों से उस समय दिगम्बर मुनियों का निर्वाध रूप में जनता के मध्य विचरने और धर्मोपदेश देने का स्पष्टीकरण होता है। बौद्ध गृहस्थों ने कई मरतबा दिगम्बर मनियों को अपने घर के अन्तःपुर में बुलाकर परीक्षा की थी। सारांशत: दि० मुनि उस समय हाट-बाजार, घर-महल, रंक-राव-सब ठौर सब ही को धर्मोपदेश देते हुए विहार करते थे। अब ग्रागे के पृष्ठों में भगवान महावीर के उपरान्त दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व और विहार का विवेचन कर देना उचित है। नन्द-साम्राज्य में दिगम्बर-मुनि "King Nanda had taken away image' known as 'The Jina of Kalinga'...carrying away idols of worship as a mark of trophy and also showing respect to particular idol is known in . after history. The datum (1) proves that Nanda was laina and (2) that Jainism was introduced in Orissa very early..." -K, P Jayaswal. शिशुनागवंशमै कुणिक अजात शत्र के उपरान्त कोई पराक्रमी राजा नहीं सुना और मगध साम्राज्य की बागडोर नन्दवंश के राजाओं के हाथ में आ गई। इस वंश में वर्द्धन' (Increaser) उपाधि-धारी राजा नन्द विशेष प्रख्यात और प्रतापी था। उसने दक्षिण पूर्व और पश्चिमीय समुद्रतटवती देश जीत लिए थे तथा उत्तर में हिमालय प्रदेश और काश्मीर एवं अवन्ती और कलिंग देश को भी उसने अपने अधीन कर लिया था ।२ कलिंग-विजय में वह वहाँ से 'कलिंग-जिन' नामक एक प्राचीन मूर्ति ले आया था और उसे विनय के साथ उसने अपनी राजधानी पाटलीपुत्र में स्थापित किया था। उसके इस कार्य से नन्द बर्द्धन का जैनधर्मावलम्बी होना स्पष्ट है। 'मुद्राराक्षस नाटक' और जैन साहित्य से इस बंश के राजाओं का जैनी होना सिद्ध है और उनके मन्त्री भी जैन थे। अन्तिम नन्द का मन्त्री राक्षस नामक नीतिनिपुण पुरुष था। 'मुद्राराक्षस' नाटक में उसे जीवसिद्धि नामक क्षपणक अर्थात् दिगम्बर जैन मुनि के प्रति विनय प्रगट करते दर्शाया गया है तथा यह जीवसिद्धि सारे देश में हाट बाजार और ग्रन्त:पुर--सब ही ठौर बेरोक टोक विहार करता था, यह बात भी उक्त नाटक से स्पष्ट है। ऐसा होना भी स्वाभाविक, क्योंकि जब नन्द वंश के राजा जैनी थे तो उनके साम्राज्य में दिगम्बर जैन मुनि की प्रतिष्ठा होना लाजमी थी। जनश्रुति से यह भी प्रगट है कि अन्तिम नन्द राजा ने 'पञ्चपहाड़ी' नामक पांच स्तूग - - -- । ----- -- --- -- १. "At that time a great number of the Niganthas (running) through Vaisali, from road to road, cross-way to cross-way, with outstretched arms cried, Tolay Siha, the General has killed a great ox and bas made a mical for the Samana Gotama, the Samna Gotama knowingly eats this meat of an animal killed fo. this very purpose, and has thus become virtually the author of that deed." - Vinaya 'Texts, S.B.E. Vol XVIT, 11, 116 and KG.,p. 85. २. HG., pp. 88-95 व भम०, पृष्ठ २४६-२५६ । ३. JRORS., Vol. XIIl p. 245. ४. Ibid., Vol. I. pp. 78-79 ५. Chanakya says: "There is a fellow of my studies, deep The Brahman Indusarman, bin I sent, When just I vowed the death of Nanda, bither, And here repairing as a Buddh ? (क्षपणक) mendicant." Having the marks of a Ksapanaka the individual is a Jaina... Raksasa repose in him implicit confidence. -HDW., P, 10.)

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