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संक्षेप में इनका विवरण इस प्रकार है:१. अकन्छ' - लंगोटी रहित जैन मुनि । २. अकिन्चन --जिसके पास किंचित् मात्र (जरा भी) परिग्रह न हो वह जैन मुनि।।
३. अचेलक या अचंलव्रती-चेल अर्थात् वस्त्र रहित साधु । इस शब्द का व्यवहार जैन और जैनेतर साहित्य में हमा मिलता है । 'मूलाचार में कहा है:
"अच्चलकं लोचों" वोसट्ठसरीरदा य पडिलिहणं ।
एसो हु लिंगकप्पो चदुविधो होदिणादब्बो।। ६० अर्थ--'पाचेलक्य अथात् कपड़े आदि सब परिग्रह का त्याग, केश लोंच, शरीर संस्कार का प्रभाव, मोर पीछी-यह चार प्रकार लिंग भेद जानना ।' श्वेताम्बर जैन ग्रंथ "आचारांगसूत्र" में भी अचेलक शब्द प्रयुक्त्त हुआ मिलता है :
"जे अचेले परि बसिए तस्सणं भिक्खस्सणो एवभवद ।
"अरेलए ततो चाई, त बोसज्ज वत्थमणगारे।" उनके 'ढाणांगसूत्र' में है : "पंचहि ठाणेहि समण निग्गथे अचेलए सचेलयाटि निगंथीहिं सद्धि सेतसयाणे नाइक्कमइ।" अर्थात् "और भी पांच कारण से रहित साधु वस्त्र सहित साध्वो साथ रहकर जिनाजा का उल्लंघन करते हैं।"
बौद्ध शास्त्रों में भी जैन मुनियों का उल्लेख 'अचेलक' रूप में हआ मिलता है। जैसे "पाटिकपुत अचेलो"--अचेलक पाटिक पुत्र, यह जैन साधु थे। चोनी त्रिपिटक में भी जैन साधु "अचेलक' नाम से उल्लेखित हये हैं। बौद्ध टीकाकार बुद्धधोष 'अचेलक' से भाव नग्न के लेते हैं। ४. अतिथि–ज्ञानादि सिद्ध यर्थ तनुस्थित्यन्निाय यः स्वयम् यत्नेनातति गेहं वा न तिथिर्यस्य सोऽतिथिः ।
-सागार धर्मामृत अ०५ श्लो० ४२ । जिनके उपवास, व्रत आदि करने की गृहस्थ श्रावक के समान अष्टमी प्रादि कोई खास तिथि (तारीख) नियत न हो; जब चाहे करें।
५. अनगार"-.प्रागार रहित, गृहत्यागी दिगम्बर मुनि । इस शब्द का प्रयोग-प्रणयारमहरिसीण "मूलाचार, अनगारभावनाधिकार श्लो०२ में अनगार महर्पिणा इसी श्लोक की संस्कृत छाया और "न विद्यतेऽगारं गहंस्त्यादिकं षां तेऽनगारा" इसी श्लोक की संस्कृत टीका में मिलता है।
श्वेताम्बरीय "प्राचारांग" सूत्र में है : "तं वोसज्ज वस्थमणगारे।"१५ ६. अपरिग्रही-तिलतुषमात्र परिग्रह रहित दिग० मुनि ।
७. प्रतीक--लज्जाहीन, मंगेमुनि । इस शब्द का प्रयोग अजैन ग्रन्थकारों ने दिगम्बर मुनियों के लिये धणा प्रकट करते हुये किया है ; जैसे वौद्धों के "दाठावंश' में है ।१२
"इमे अहिरिका सब्जे सद्धादिगुणवन्जिता । थद्धा सठाच दुप्पचा सरगमोक्ख विबन्धका ।। "
३. पृष्ठ ३२६
१. बृजेश० पृष्ठ ४ २. (Ibid) ४. आचा० पृष्ठ १५१ ५. अध्याय १ उद्देस १ सूत्र ४ ६. दारणा पृ० ५६१ ७. भमव० पृ० २-२५ *. "वीर" वर्ष ४ पृ० ३५३ ६. अचेलकोऽतिनिम्चेलो नग्गो।'...IHO 11245 १०. बूजश०, पृ०४ ११. आचा० पृ०२१० १२. दाटा पृ. १४
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