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मुनि के लिए व्यवहुत हुआ मिलता है। नोनियर विलियम्स के संस्कृत कोष में भी इसका अर्थ यही लिखा है।"
इस प्रकार उपरोक्त नामों से दिगम्बर जैन मुनि प्रसिद्ध हुए मिलते हैं। अतएव इनमें से किसी भी शब्द का प्रयोग दिगम्बर मुनि का द्योतक ही समझना चाहिए।
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इतिहासातीत काल में दिगम्बर मुनि
प्रातिथ्यरूपं मासरं महावीरस्य नग्नतुः । रूपमुपसदा मेतत्तिस्त्रो रात्री सुरासुता ।
यजुर्वेद अ० मंत्र १४
भारतवर्ष का ठीक-ठीक इतिहास ईस्वी पूर्व पाठवी शताब्दी तक जाना जाता है। इसके पहले की कोई भी बात विश्वासनीय नहीं मानी जाती, यद्यपि भारतीय विद्वान अपनी धार्मिक वार्ता इस काल से भी बहुत प्राचीन मानते और उसे विश्वासनीय स्वीकार करते हैं। उनकी यह वार्ता "इतिहासातीत काल की वार्ता समझनी चाहिए। दिगम्बर मनियों के विषय में भी यही बात है। भगवान ऋषभदेव द्वारा एक अज्ञात अतीत में दिगम्बर मुद्रा का प्रचार हुआ और तब से यह इस्वी पूर्व वी शताब्दी तक ही नहीं बल्कि आजतक निर्वाध प्रचलित है। दिगम्बर मुद्रा के इस इतिहास की एक सामान्य रूपरेखा यहां प्रस्तुत करना अभीष्ट है ।
इतिहासातीतकाल में प्राचीन जैन शास्त्र अनेक जैन सम्राद् और जैन तीर्थकरों का होना प्रगट करते हैं और उनके द्वारा दिगम्बर मुद्रा का प्रचार भारत में ही नहीं बल्कि दूर-दूर देशों तक हो गया था। दिगम्बर जैन प्रस्ताव के प्रथमानुयोग सम्बन्धी शास्त्र इस कथा – वार्ता से भरे हुए हैं, उनको हम यहां दुहराना नहीं चाहते. प्रत्युत जैन शास्त्रों के प्रमाणों को उपस्थित करके हम यह सिद्ध करना चाहते हैं कि दिगम्बर मुनि प्राचीन काल से होते घाये हैं और उनका बिहार सर्वत्र निर्वाध रूप में होता रहा है ।
भारतीय साहित्य में वेद प्राचीन ग्रन्थ माने गये है। यतः सबसे पहले उन्हीं के आधार से उक्त व्यस्था को पुष्ट करना श्रेष्ठ है। किन्तु इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि वेदों के ठीक-ठीक अर्थ आज नहीं मिलते और भारतीय धर्मों के पारस्परिक विरोध के कारण बहुत से ऐसे उल्लेख उनमें से निकाल दिये गये अथवा अर्थ बदलकर रक्खे गये हैं जिनसे वेदवाह्य सम्प्रदायों का समर्थन होता था। इसी के साथ यह बात भी है कि वेदों के वास्तविक अर्थ श्राज ही नहीं मुद्दतों पहले लुप्त हो चुके थे और यही कारण है कि एक ही वेद के अनेक विभिन्न भाष्य मिलते हैं। अतः वेदों के मूल वाक्यों के। 'अनुसार उक्त व्याख्या की पुष्टि करना यहां प्रभीष्ट है।
यजुर्वेद [अ०] १६ १४ में जो इस परिच्छेद के प्रारम्भ में दिया हुआ है, अन्तिम तीर्थंकर महावीर का स्मरण नग्न विशेषण के साथ किया गया है। महावीर मीर "नग्न" शब्द जो उक्त मंत्र में प्रयुक्त हुए हैं उनके अर्थ कोष पन्थों में सन्तिम जैन तीर्थकर र दिगम्बर ही मिलते हैं। इसलिए इस मंत्र का सम्बन्ध भगवान महावीर से मानना ठीक है। वैसे बौद्ध साहि त्यादि से स्पष्ट है कि महावीर स्वामी नग्न साधु थे। इस अवस्था में उक्त मंत्र में "महावीर" शब्द "नग्न" विशेषण सहित प्रयुक्त हुआ इस बात का द्योतक है कि उसके रचयिता को तीर्थंकर महावीर का उल्लेख करना इष्ट है। इस मंत्र में जो शेष
t.Ksapnaka is a religious mendicant. specially a Jain mendicant who wears no garment." Monier William's Sunskrit Dictionary p. 326.
२. ई० पूर्ष ७ वीं शताब्दीका वैदिक विद्वान कौत्स्य वेदों को अनर्थक बतलाता है । (अनर्थका हि मन्त्राः। यारक, निरुक्त १५- १ ) यार इसका समर्थन करता है (नित १६२) देखो Asure India. p. IV
P.
३. . ० ५५-६०
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