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में जो प्राचार्यों के समय की गणना विक्रम के राज्यारोहण काल से-उक्त जन्म काल में १८ वर्ष की वृद्धि करके-की गई है वह सब उक्त शक काल को और उसके आधार पर बने हुए विक्रम काल को ठीक न समझने का परिणाम है, अथवा यों कहिये कि पार्श्वनाथ के निर्वाण से ढाई सो वर्ष बाद महावीर का जन्म या केवल ज्ञान को प्राप्त होना मान लेने जैसी गलती है।
ऐसी हालत में कुछ जैन, अजैन तथा पश्चिमीय और पूर्वीय विद्वानों ने पट्टवलियों को लेकर जा प्रचलित बोर निर्माण सम्वत पर यह आपत्ति को है, कि उसको वर्ष संख्या में १८ वर्ष को कमो है जिसे पूरा किया जाना चाहिए, वह ममाचोन मालुम नहीं होती, और इसलिए मान्य किये जाने के योग्य नहीं । उसके अनुसार वीर निर्माण से ४८ वर्ष बाद विक्रम सम्वत का प्रचलित होना मानने से विक्रम और शक सम्बतों के बीच जो १३५ वर्ष का प्रसिद्ध अन्तर है वह भी बिगड़ जाता है—सदोष ठहरता है -अथवा शक काल पर भी आपत्ति लाजिमी आतो है जो हमारा इस काल गणना का मूलाधार है, जिस पर कोई आपत्ति नहीं की गई और न यह सिद्ध किया गया कि शकराजा ने भो वोर निर्माण से २०५ वर्ष ५ महीने के बाद जन्म लेकर १८ वर्ष की अवस्था में राज्याभिषेक के समय अपना सम्बत प्रचलित किया है। प्रत्युत इसके, यह बात ऊपर के प्रमाण से भो भले प्रकार सिद्ध है कि यह समय शक सम्बत की प्रवृत्ति का समय है -चाहे वह संवत् शकराजा के राज्य काल को समाप्ति पर प्रवृत्त हुमा हो या राज्यारम्भ के समय-शक के शरीर जन्म का समय नहीं है। साथ ही श्वेताम्बर भाइयों ने जो वोर निर्वाण से ४७० वर्ष बाद विक्रम का राज्याभिषेक माना है और जिसकी वजह में प्रचलित वोर निर्वाण सम्बत में १८ वर्ष के बढ़ाने का भी कोई जरूरत नही रहती उसे क्यों ही क न मान लिग जाय. इसका कोई समाधान नहीं होता। इसके सिवाय जालंचाटियर की यह आपत्ति बराबर बनो हो रहती है कि वोर निर्वाण ४७० वर्ष के बाद जिस विक्रम राजा का होना बतलाया जाता है उनका इतिहास में कहीं भी कोई अस्तित्व नहीं है परन्तु विक्रम संवत् को विक्रम का मत्यु का सम्वत् मान लेने पर यह आपत्ति कायम नहीं रहता, क्योंकि जार्ल चाटियर ने वीर निर्माण से ४१० वप के बाद विक्रमराजा का राज्यारम होना इतिहास से सिद्ध माना है। और यहो समय उसके राज्यारम्भ का मृत्यु सम्बत् मानने से प्राता है, क्योंकि उसका राज्यकाल ३० वर्ष तक रहा है। मालम होता है जार्ल चाटियर के सामने विक्रम सम्वत के विषय में विक्रम को मृत्यु का सम्वत् हान को कल्पना ही विक्रम सम्बत् का प्रचलित होना मान लिया है और इस भूल तथा गलती के आधार पर हा प्रचलित वार निर्वाण सम्वत् पर यह आपत्ति कर डाली है कि उसमें ६० वर्ष बढ़ हए हैं। इसलिए उसे ६० वर्ष पीछे हटाना चाहिए.-अर्थात इस समय जो २४६० सम्बत् प्रचलित है उसमें ६० वर्ष घटाकर उसे २०४० बनाना चाहिए । अतः प्रापकी यह आपत्ति भो निःसार है और वह किसी तरह भी मान्य किये जाने के योग्य नहीं ।
अब मैं यह बतला देना चाहता है कि जालचाटियर ने, विक्रम सम्वत को विक्रम की मृत्यु का सम्वत् न समझते हए पौर यह जानते हुए भी कि श्वेताम्बर भाइयों ने वीर निर्वाण से ४७० वर्ष बाद विक्रम का राज्यारम्भ माना है, बोर निर्माण से ४१० वर्ष बाद जो विक्रम का राज्यारम्भ होना बतलाया है वह केवल उनको निजी कल्पना अथवा खोज है या कोई शास्त्राधार भी उन्हें इसके लिए प्राप्त हना है । शास्त्राधार जरूर मिला है और उससे उन श्वेताश्वर विद्वानों को गलती का भी पता चल सकता है जिन्होंने जिन काल और विक्रम काल के ४७० वर्ष के अन्तर को गणना विक्रम के राज्याभिषेक से को है और इस तरह विक्रम सम्बत् को विक्रम के राज्यारोहण का सम्वत् बतला दिया है। इस विषय का खुलासा इस प्रकार है:
श्वेताम्बराचार्य श्री मेरुतुग ने, अपनी विचारश्रणो में-जिसे स्थविरावली भी कहते हैं, जं रणि कालगो प्रादि कुछ प्राकृत गाथानों के आधार पर यह प्रतिपादन किया है कि जिस रात्रि को भगवान महावोर पावापुर में निर्वाण को प्राप्त हुए उसी रात्रि को उज्जयिनी में चण्डप्रद्योत का पुत्र पालक राजा राज्याभिषिक्त हुना, इसका राज्य ६० वर्ष तक रहा, इसके बाद क्रमश: बन्दी का राज्य १५५ वर्ष, मीयों का १०८, पुष्यमित्र का ३०, बलमित्र भानुमित्र का ६०, नवोवाहन (नरवाहन) का ४०, गर्दभिल्ल का १३ और शक का ४ वर्ष राज्य रहा। इस तरह यह काल ४७० वर्ष का हुआ । इसके बाह गर्दभिल्ल के पुत्र विक्रमादित्य का राज्य ६० वर्ष, धर्मादित्य का ४०, भाइल का ११. नाइल्ल का १४ और नाहका १० वर्षे मिलकर १३५ वर्ष का दूसरा काल हुआ। और दोनों मिलकर ६०५ वर्ष का समय महावीर के निर्वाण बाद हुया । इसके बाद शकी का राज्य पौर शक सम्बत् की प्रवृत्ति हुई, ऐसा बतलाया है। यही वह परम्परा और काल गणना है जो श्वेतान्बरों में प्रायः करके मानो जाती है।
परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय के बहमान्य प्रसिद्ध विद्वान श्री हेमचन्द्राचार्य के परिशिष्ट पर्व से यह मालूम होता है कि उज्जयिनी के राजा पालक का जो समय (६० वर्ष) ऊपर दिया है उसो समय मगध के सिंहासन पर श्रेणिक के पुत्र
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