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किन्तु यह उनके लिये इस्लाम के उस जन्म काल में संभव नहीं था कि वह खुद नम्न होकर त्याग और वैराग्य -तकें दुनिया का श्रेष्ठतम उदाहरण उपस्थित करते। यह कार्य उनके बाद हुए इस्लाम के सूफी तत्ववेत्ताओं के भाग में आया। उन्होंने 'तक' अथावा त्यागधर्म का उपदेश स्पष्ट शब्दों में दिया ---
___To abandon the world, its comfo.ts and dress,-all things now and to come,-Conform ably with the Hadees of the Prophet."
अर्थात-"दुनिया का सम्बन्ध त्याग देना- तर्क कर देना- -उसकी प्राशाइशों और पोशाला--सब ही चीजों को प्रवको और आगे की--पंगम्बर सा० की हदीस के मुताबिक ।"
इस उपदेश के अनुसार इस्लाम में त्याग और वैराग्य को विशेष स्थान मिला । उसमें ऐसे दरबेश हुये जो दिगम्वरत्व के हिमायती थे और तुकिस्तान में 'अब्दल' (Abdals) नामक दरवेश मादरजात नंगे रहकर अपनी साधना में लोन रहते बताये गये हैं। इस्लाम के महान सूफी तत्ववेता और सुप्रसिद्ध 'मस्नवी' नामक ग्रन्थ के रचयिता थी जलालुद्दीन रूमो दिगम्बरत्व का खुला उपदेश निम्न प्रकार देते हैं :
१- "गुफ्त मस्त ऐ महतब बगुज़ार रव-अज बिरहना के तवां वुरदन गरव । (जिन्द २ सफा २६२)" २-जामा पोशारा नजर परगाज़ रास्त–जाम अरियां रा तजल्ली जबर अस्त ।"
(जिल्द सफा ३८२) ३-."याज अरियानान बयकसु बाज रव-या चं ईशा फारिस व बेजामा शव !" ४–“वरनमी तानी कि कुल अरियां शबी--जामा कम कुन ता रह औसत रवी !!"
--(जिल्द २ सफा ३८३) इनका उर्दू में अनुवाद 'इल्हामे मन्जूम' नामक पुस्तक में इस प्रकार दिया हुया है१- मस्त बोला, महतब, कर काम जा-होगा क्या नङ्गे सेतु अहदे वर पा! २. है नजर धोबी पैजाम-पोश को है तजल्ली जेवर अरियां तनी!! ३-या बिरहनों से हो यकसू वाक़ई-या हो उन की तरह बेजाम प्रस्ती ! ४-मुतलकन परियां जो हो सकता नहीं-कपड़े कम यह है कि ग्रासत के करी !!
भाव स्पष्ट है। कोई ताकिक मस्त नगे दरवेश से आ उलझा। उसने सीधे से कह दिया कि जा अपना काम कर-तु नहगे के सामने टिक नहीं सकता। वस्त्र धारी को हमेशा धोवी को फिकर लगी रहती है। किन्तु नंगे तन की शोभा देवी प्रकाश है। बस, या तो तु नगे दरवेशों से कोई सरोकार न रख अथवा उनकी तरह आजाद और नगा हो जा! और अगर तू एक दम सारे कपड़े नहीं उतार सकता तो कम से कम कपड़े पह्न और मध्यमार्ग को ग्रहण कर ! क्या अच्छा उपदेश है। एक दिगम्बर जैन साधु भी तो यही उपदेश देता है। इससे दिगम्बरत्व का इस्लाम से सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है।
और इस्लाम के इस उपदेश के अनुरूप सैकड़ों मुसलमान फकीरों ने दिगम्बरवेष को गतकाल में धारण किया था। उनमें अबुलकासिम गिलानी और सरमद शहीद उल्लेखनीय हैं।
सरमद बादशाह औरंगजेब के समय में दिल्ली में हो गुजरा है और उसके हजारों नंगे शिष्य भारत भर में बिखरे पड़े थे। वह मूल में कजहान (परमेनिया) का रहने वाला एक ईसाई व्यापारो था। विज्ञान और विद्या का भी वह विद्वान था। अरबी अच्छी खासी जानता था । व्यापार के निमित्त भारत में आया था। ठट्टा (सिंध) में एक हिन्द्र लड़के के इश्क में पड़ कर मजन बन गया। उपरान्त इस्लाम के सूफी दरवेशों को संगति में पड़ कर मुसलमान हो गया । मस्त नगा वह शहरों और .-.. .. .. . . - ... ... . --- --- .... -..- . -. -... -
१. The Dervishes-KK. P. 738.
२. "The higher Saints of Islam, called 'Abdals' generally went about perfectly naked, as described by Miss Lucy M. Garnet in her excellent account of the Muslim Dervishes, entitled "Mysticism and Magic in Turkey."-NJ. P. 10
३. जिल्द और पाठ के नम्बर "मस्नवी" के उर्दू अनुवाद "इव्हामे मजूम" के हैं। ४. KR., P.739 and NJ. PP.8-9 ५. JG., XX PP. 158-159.