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श्री भर्तृहरि की वैराग्यशतक' में कहते हैं':'एकाकी निःस्पृहः शान्तः पाणिपात्र दिगम्बरः । कदाशम्भो भविष्यामि कर्मनिर्मलनक्षमः ||८
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अर्थ "हे शम्भो ! मैं अकेला इच्छा रहित, शान्त, पाणिपात्र और दिनम्बर होकर कर्मों का नाश कब कर सकेगा।" वह और भी कहते हैं।
धीमहि वयं भिक्षामाशावासो वसीमहि । मोहिमही हि कमी ||
अर्थ "अब हम भिक्षा ही करके भोजन करेंगे; दिया हो के वस्त्र धारण करेंगे अर्थात् नमन रहेंगे और भूमि पर ही शयन करेंगे। फिर भला धनवानों से हमें क्या मतलब ?"
साधु
सातवीं शताब्दी में जब चीनी यात्री हुएनसांग बनारस पहुंचा तो उसने वहां हिन्दुओं के बहुत से नंगे देखे | यह लिखता है कि "महेश्वर भक्त साधू वालों की बांध कर जटा बनाते हैं या वस्त्र परित्याग करके दिवंगर रहते हैं और शरीर में भस्म का लेप करते हैं । ये बड़े तपस्वी है ।" इन्हीं को परमहंस परिव्राजक कहना ठीक है। किन्तु हुए नसांग से बहुत पहले ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दी में जय सिकन्दर महान् ने भारत पर आक्रमण किया था, तब भी नंगे हिन्दू साधु यहाँ मौजूद थे।
अरस्तु का भतीजा स्थिsो कल्लिस्थेनस (Pseudo Kallisthenes ) सिकन्दर महान के साथ यहां आया था और वह बताता है कि "ब्राह्मणों का थमनों को तरह कोई संच नहीं। उनके साधु प्रकृति को अवस्था में (State of nature) -नम्न नदी किनारे रहते हैं और नंगे हो घूमते हैं ( Go about naked) उनके पास न चोपाये हैं, न हल हैं, न लोहा-लंगड है, न घर है, न बाग है, न नोठी है, न मुरा है यह कि उनके पास धन और मानन्द का कोई सामान नहीं है। इन साधुओं की स्त्रियों गंगा के दूसरी ओर रहता है; जिनके पास जुलाई और ग में वे जाते हैं। वन जंगल में रहकर वे वन फल खाते हैं।*
सन् ८५१ में अरब देश से सुलेमान सौदागर भारत आया था। उसने यहां एक ऐसे नंगे हिन्दू योगी को देखा था जो सोलह वर्ष तक एक श्रासन से स्थित था ।
बादशाह औरंगजेब के जमाने में फांस से श्राये हुए डा० बर्नियर ने भी हिन्दुओं के परमहंस (नंगे) सन्यासियों को देखा था । वह इन्हें 'जोगी' कहता है और इनके विषय में लिखता है
१. वेजं० पृ० ४६ । २. वेज०, पृ० ४७ ।
३. हुमा० पू० ३२०
४. AI., P. 181
५. Elliot 1 P-4 ६. Bernier, P. 316
"I allude particularly to the people called 'Jaugis' a name which signifies 'united to God'. Numbers are seen, day and night, seated or lying on ashes, entirely naked, frequently under the large trees near talabs or tanks of water, or in the galleries round the Deuras of idol temples. Some have hair hanging down to the calf of the leg, twisted and entangled into knots. like the coat of our shaggy dogs. I have seen several who hold one and some who hold both arms perpetually lifted up above the head, the nails of their hands being twisted, and longer than half my little finger, with which I measured them. Their arms are as small and thin as the arms of persons who die in a decline, because in so forced and unnatural a position they receive not sufficient nourishment, nor can they be lowered so as to supply the mouth with food, the muscles having become contracted and the articulations dry and stiff. Novices wait upon these
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